Teachers Day Speech in Hindi | शिक्षक दिवस पर भाषण
साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए “Teachers Day Speech in Hindi | शिक्षक दिवस पर भाषण” लेकर आएं हैं! हमारा मानना है की हर व्यक्तिके जीवन में कभी न कभी यह मोका ज़रूर आता है जब वह अपने स्कूल, कॉलेज में टीचर्स डे के मौके पर Anchoring करता है! पढ़िए हमारा खास आर्टिकल…
वक़्त, बस दुनियां में एक यही चीज है जो इन्सान खरीद नहीं सकता| सबके पास एक सा वक़्त होता है, 24 घंटे! इन 24 घंटों में इन्सान अपनी ज़िन्दगी को जीना भी चाहता है, अपने सपनों को पूरा भी करना चाहता है और कुछ वक़्त अपनों के साथ बाँटना भी चाहता है|
आप सब सोच रहें होंगे की आज “शिक्षक दिवस ( टीचर्स डे | Teachers Day Speech in Hindi )” के इस खास अवसर पर में यह वक़्त की बात क्यों कर रहा हूँ| लेकिन आपका सोचना भी बिलकुल सही है, आखिर आजकल दूसरों के बारे में सोचने का वक़्त किसके पास है|
लेकिन संसार में ऐसे भी बिरले लोग हैं जो अपनी ज़िन्दगी का एक बहुत बड़ा वक़्त दूसरों के बारे में सोचने और दूसरों का जीवन सँवारने में लगा देते हैं| जी हाँ, अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की में किसकी बात कर रहा हूँ|
हमारे शिक्षक, गुरुजन, टीचर्स या फिर यूँ कहें हमारे मार्गदर्शक जो ज़िन्दगी में एक ही सपना देखते हैं की, उनके पढ़ाए हुए बच्चे ज़िन्दगी में बहुत बड़ा मुकाम हांसिल करे| एक बार फिर आप सभी को “शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाए!
शिक्षक दिवस पर भाषण | Teachers Day Speech in Hindi
५ सितम्बर, शिक्षक दिवस जिसे भारत के पहले उप राष्ट्रपति और दुसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है| कुछ सालों पहले इस दिन भारत में सार्वजनिक अवकाश हुआ करता था, लैकिन कुछ सालों में भारत सरकार ने इस दिन को हर स्कूल और शेक्षणिक संस्थान में मनाना अनिवार्य कर दिया है|
वैसे तो हर देश में अपना टीचर्स डे मनाया जाता है, लेकिन भारत में इस दिन को बड़े ही शानदार तरीके से मनाया जाता है| शायद इसलिए क्यों की हमारी भारतीय संस्कृति में गुरुजनों और हमारे शिक्षकों को बड़े ही सम्मान की दृष्ठि से देखा जाता है| राजा-महाराजाओं के समय से गुरुजनों का एक विशिष्ठ महत्त्व हमें हिन्दू पौराणिक कथाओं में देखने को मिलता है|
वह चाहे आरुणी की गुरुभक्ति हो जो गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए बारिश के पानी को खेत में घुसने से रोकने के लिए खुद खेत की मेड बनकर सो गया हो या फिर महान धनुर्धर एकलव्य की हो जिसने द्रोणाचार्य को गुरु मानकर विद्या ग्रहण की और गुरु की आज्ञा मानकर अपना अंगूठा काटकर गुरु को गुरु दक्षिणा में दे दिया हो|
ऐसे कई उदारहण और कहानियां आज भी हमारी भारतीय संस्कृति में विद्यमान है जो हमें गुरु-शिष्य के अटूट प्रेम और सम्मान का पाठ पढ़ाती है| लेकिन आज समय में काफी परिवर्तन आ गया है| आज हमारे गुरुजनों को हमसे गुरुदाक्षिणा में सिर्फ एक ही चीज चाहिए और वो है सम्मान| आज की मार्डन और भागदौड़ भरी जीवनशेली में सब कुछ तीव्र हो गया है|
हम कब हमारी पढाई पूरी कर हमारी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाते हैं हमें पता ही नहीं चलता लेकिन एक इन्सान हमेशा वहीँ रहता है, हमारा जीवन सँवारने के बाद वह फिर किसी और का जीवन सँवारने में जुट जाता है| मन में हमेशा एक हि ख्वाब लेकर चलता है की उनके पढाए हुए बच्चे ज़िन्दगी में एक बड़ा मुकाम हांसिल करे|
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