Comedy Story in Hindi | बुन्दू ताऊ
साथियों नमस्कार, आज के इस अंक में हम आपके लिए “Comedy Story in Hindi | बुन्दू ताऊ” लेकर आएं हैं| यह कहानी हास्यास्पद होने के साथ-साथ एक खास शिक्षा भी देती है की जीवन में किसी भी परिस्थिथि में हमें अपने संयम और दिमाग से काम लेना चाहिए| आशा है आपको हमारी यह कहानी ज़रूर पसंद आएगी…
Comedy Story in Hindi | बुन्दू ताऊ
बुन्दू ताऊ जीवन के 65 वर्ष बिता चुके थे| अब सब उन्हें “बुन्दू ताऊ” ही कहते थे| कोई नहीं था जो ये बताये कि पुरोहित ने उनका क्या नाम सुझाया था और कैसे अपभ्रंश बुन्दू की उत्पत्ति हुई|
बुन्दू ताऊ के पास बहुत से किस्से थे अपनी उपलब्धियों के, लेकिन ताई हमेशा कहती थी “उत्ते नै कुछ ना करा चिलम फूंकने अर सराप पिने सै सिवा, यो तो मै ही….. होर कोई होत्ती तो चली जात्ती छोड़ कै”|
बुन्दू ताऊ कभी स्कुल तो गए नहीं थे| पिता ने दो तीन वर्ष अथक प्रयास किये गाँव की पाठशाला में पढ़ाने के| लेकिन आखिर बुन्दू के बाल-अवतार ने सिद्ध कर दिया कि शिक्षा जैसी भोतिक अकांक्षाओ से परे हैं वों| यौवन के 15 वें वर्ष की देहलीज पर आते ही बुन्दू कुछ महान संतों के सानिध्य में आकर चिलम फूंकने में माहिर हो गए थे|
बाकी अफीम, गान्झा पर भी पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया था| जवानी का 20 वाँ साल आते आते तो बुन्दू चिलम फूंकने की विधा में इतने पारंगत हो चुके थे कि पहले ही दम में अपनी प्रतिभा का यशोगान करती हुयी ऊँची अग्नि की लुक चिलम से उठा देते थे| काफी नाम कमा लिया था बुन्दू ने|
बुन्दू की प्रतिभा यहीं तक नहीं रुकी वो एक सम्मानित शराबी भी थे| इकलोता उदाहरण थे बुन्दू जिनका शराबियों की महफ़िल और भंगेडियों की टोली में बराबर सम्मान था| बुन्दू की प्रतिभा इतनी ही नहीं थी, वो घर में ही कनस्तर के भपारे से शराब निकालने में माहिर थे और बुन्दू के हाथ का उतरा सुल्फा भी ख़ास स्थान रखता था|
लेकिन ये सब बुन्दू करते अपने लिए ही थे|बुन्दू को अपनी प्रतिभा पर बिलकुल अभिमान नहीं था| चिलम में लम्बा कश तब तक खींच कर जब तक की चिलम की अग्नि की ज्वाला ऊँचे उठकर बुन्दू की शक्ति को नमन ना करे फिर अपनी चढ़ी आँखों को झपझपा कर बुन्दू बोलते थे “मैं क्या हूँ सब बाबा भोले नाथ का प्रताप है”|
सामान्यतया भांग फूंकने वाले शराब नहीं पीते और शराबी भांग नहीं पीते| लेकिन बुन्दू ताऊ इस मामले में अपवाद थे, दोनों ही दैवीय पदार्थो का शेवन बराबर करते थे| और इसके पीछे बुन्दू ताऊ का एक गूढ़ दर्शन भी था|
वो कहते थे “भाईईईईईई शराब यादमी के भित्तर जोश बढ़ा…. अर भांग मन कु शांति दे| तो दोन्नो कु बराबर लो, कोई सिमस्या ई ना हो| इब ये सराप्पी पियों जा…. अर फेर भिड़ते फिरो जां| जोश कु होश की जुरुत हो, तो सराब तै जोश आ अर सुल्फा दिमाग कु होश मै रक्खै”
वैसे बुन्दू ताऊ का आचरण उनके इस गूढ़ दर्शन को प्रमाणित भी करता था| बुन्दू अपने ही भपारे की निकली कच्ची पीने के बाद साक्षात् काल का अवतार बन जाते थे| उस समय वो चीन से अत्यंत क्रुद्ध होते थे| आखिर हो भी क्यों ना, चीन ने उनके अराध्य शिव के वास स्थान पर जो अतिक्रमण कर रखा था|
वो बस तुरंत चीन पर आक्रमण के लिए उद्यत हो उठते थे| वो तो भला हो उन समझदार शराबियों का जो उनके साथ होते थे और उन्हें संभाल लेते थे अन्यथा चीन कभी का मानचित्र से गायब हो गया होता| विश्व में किसी को नहीं पता था कि इन महान शराबियों के कारण विश्व तृतीय विश्वयुद्ध की विभीषिका से बचा हुआ था|
लेकिन जब वो भांग फूंक लेते थे तो बेहद शालीन होते थे| यदि उनसे कैलाश पर्वत पर आततायी चीन के अतिक्रमण की बात की भी जाती थी तो वो बोलते थे “पापकरम हैं भाई म्हारे, आग्गै तो आवेंगे| चीन की के औकात….. यो तो बाब्बा कु ई ना रहना हा म्हारे गैल| रै नूं बी कहं कि यु तो नशा करै इस्तै दूर रओ, रै बावलो यो तो आशीर्वाद है बाब्बा का”
बुन्दू ताऊ के पास किस्सों की कोई कमी नहीं थी| वो अपने किस्सों में महानायक होते थे| जब उनकी महफ़िल जमती तो वो बताते “सुभास चन्न बोस मझै छोट्टा भाई मान्नै हे” फिर वो बताते थे कि सुभाष चन्द्र बोस हादसे में नहीं मरे थे और उनके बराबर संपर्क में रहे थे| जब नेता जी हिमालय पर गए तो बुन्दू ताऊ उनके साथ गए थे|
आप पढ़ रहें हैं Comedy Story in Hindi | बुन्दू ताऊ
यूँ ही कभी वो बताते “कह्त्तर मै पकिस्तान के गैल जिब जंग छिड़ी ही तो मैई हा जिन्नै तगड़ी जसुस्सी करी ही” ऐसा कोई भी किस्सा बताते समय बुन्दू ताऊ फुफुसाकर बोलते थे| ऐसे संवेदनशील मुद्दों की गोपनीयता का ध्यान वो हमेशा रखते थे| उनके चेले विस्मृत हो जाते थे, अब ये कहा नहीं जा सकता कि ये प्रभाव किस्सागोई का था या उस बूटी का जो वो चिलम में खींच रहे होते थे|
अपने चेलो के विस्मृत चेहेरो को देखकर बुन्दू ताऊ एक बुलंदियों भरा कश चिलम में खींचते और उद्दघोष करते “जय हो पहाड़ वाले बब्बा की”| येउद्दघोष उनकी विजय के आत्मबोध को दर्शाता था|
घर की खेती बाड़ी अच्छी थी तो कभी कोई आर्थिक समस्या नहीं हुई| अब बच्चे भी सब अपने कामों में ठीक लगे हुए थे| घर में घी दूध की कोई कमी नहीं थी तो सेहत आज भी बढ़िया थी| जब उनके भांग और शराब पीने और उसकी दर का पता किसी डॉक्टर को भी लगता था तो वो आश्चर्यचकित हो जाता था| क्योंकि किसी सामान्य आदमी का स्वास्थ्य भी इतना बढ़िया नहीं था जितना इस उम्र में बुन्दू ताऊ का|
चलिए अब आतें हैं बुन्दू ताऊ के जीवन की एक रोचक घटना पर| किसान आन्दोलन चरम पर थाऔर लखनऊ में किसानो की बड़ी रैली थी| बुन्दू ताऊ भी अकेले ही रैली के लिए निकल लिए| धरना समाप्त करके बुन्दू ताऊ कुछ दिन और लखनऊ में ही रुके| वापसी में बुन्दू ने गाज़ियाबाद की रेल पकड़ ली| वहाँ से शामली अपने निवास स्थान निकलना था|
ताऊ खिड़की के साथ ही सुखासन लगाए बैठे थे| तभी एक लड़का जो उम्र में 25 वर्ष का होगा पूरे डिब्बे का अवलोकन करते हुए ताऊ के बराबर में ही आकर फंस गया| बुन्दू ताऊ अपने मस्त-मलंग स्वभाव के कारण दुनिया घुमा था और हर तरह के लोगो के सानिध्य में रहा था तो ताऊ को समझते देर नही लगी कि ये लड़का कोई ठग है|
ताऊ अपनी टारजन की बीड़ी में मस्त थे| तभी उस लड़के ने भी एक बीड़ी मांग ली| बीड़ी, हुक्का और भांग भले ही व्यसनों के दायरे में आतें हों लेकिन ये वो माध्यम हैं जो रंग, धन, जाति, संप्रदाय और क्षेत्र के भेद को अलोप कर देते हैं| बिना किसी की जात, स्तर और परिचय जाने लोग आपस में एक ही बीड़ी साझा कर लेते हैं|
very nice stories
amzing your post thanku so much
Thank you so much for Appreciation.