साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए एक ऐसी कविता “Hindi Poem on Daughter | में बेटी हूँ” लेकर आएं हैं जिसे पढ़कर आपको बेटियों पर गर्व महसूस होगा|
Hindi Poem on Daughter | बेटीयों और बहनों की अस्मिता का सवाल है
में बेटी हूँ
जी हाँ! में बेटी हूँ,
जिसके जन्म लेती ही…
माता पिता करने लगते हैं उसके दहेज़ की व्यवस्था|
जी हाँ! में वही बेटी हूँ,
में जनि जाती हूँ लक्ष्मी के रूप में भले…
पर मुझ पर किए जाते हैं अन्याय अनेक|
जी हाँ! में बेटी हूँ,
जिसके लिए नारे लगाए जाते हैं कई…
परन्तु कोख में ही ख़त्म कर दिया जाता है मुझे!
और तो और पढने से भी वंचित रखा जाता है मुझे|
जी हाँ! में वही बेटी हूँ,
पढ़ लिख कर आगे बढ़ना चाहती हूँ में,
समाज की इस व्यवस्था को बदलना चाहती हूँ में|
रचयिता – सपना कुमारी साह
बेटी
चहकतेविहान का आफ़ताब है बेटी,
महकते शाम का महताब है बेटी|
ज़िन्दगी के छंदों का अलंकार है बेटी,
कविता के पन्नों का संस्कार है बेटी|
वत्सल के श्रृंगार का रस है बेटी,
कल के संसार का यश है बेटी||
तुम मेरी सखी बनोंगी ना
सुख में दुःख में संग मेरे रहना,
तुम मेरी सखी बनोंगी ना!
जब में रुठुं, तुम मुझे मानाने आना…
हंस दो न बस एक बार,
बोल-बोल कर मुझको गले लगाना…
बोलो ऐसा करोगी ना,
तुम मेरी सखी बनोंगी ना!!
माँ, आज यह पहनों…आज यह ओढो,
कहकर मुझसे लाड जाताना…
आज यह खाना…आज वह खाना,
अपनी फरमाइशें बताना…
खूब प्यार में करती तुमसे,
तुम भी इतना प्यार करोगी ना ?
तुम मेरी सखी बनोंगी ना||
रचयीता – निभा अम्बुज जैन
अन्याय देखकर आंख उठाती,
नही तो लज्जा का अवतार है।
कितने कष्ट भी उसने झेले,
पर सहनशीलता भरमार है।
टूटने लगता जो कभी हौसला,
तो बनती सच्ची ढार है।
छेड़ो कभी जो राक्षस बनकर,
तो “दुर्गा” सी अंगार है।
रचयिता – प्रिया त्रिपाठी
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Wow ?
जी शुक्रिया
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