Rahat Indori Shayari
साथियों नमस्कार, आज के इस अंक में हम आपके लिए लेकर आएं है “राहत इन्दौरी साहब की कुछ नायब शायरियां | Rahat Indori Shayari” जिन्हें पढ़कर आप यकीनन अपने महबूब को याद करेंगे| तो बिना किसी देरी किए लीजिए आपको ले चलते हैं शायरियों और नगमों की एक अलग ही हसीन दुनियां में|
राहत इन्दोरी साहब इंदौर से हैं| हालाँकि इंदौर से कई कलाकार जैसे सलमान खान और लता मंगेशकर निकलें हैं जो आज बॉलीवुड ही नहीं देश दुनियां में छाए हुए हैं| लेकिन राहत इन्दौरी साहब के चाहने वालों में आपको हर उम्र के लोग मिल जाएँगे|
तो आइये जानते हैं रहत इन्दौरी साहब को….
Rahat Indori Shayari
Rahat Indori Sher
(1)
रास्ते में फिर वही पैरों का चक्कर आ गया,
जनवरी गुज़रा नहीं था की दिसंबर आ गया!
ये शरारत है, सियासत है या साजिश है कोई,
शाख पर फल आए..इस से पहले पत्थर आ गया!
अपने दरवाज़े पर मेने पहले खुद आवाज़ दी,
और फिर कुछ देर में खुद ही निकल कर आ गया!
मेने कुछ पानी बचा रखा था अपनी आँख में,
की समंदर अपने सूखे होंठ लेकर आ गया||
(2)
अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ,
में चाहता था चिरागों को आफ़ताब करूँ!
खुदा से मुझको इजाजत अगर कभी मिल जाए,
तो शहर भर के खुदाओं को बेनकाब करूँ!
है मेरे चरों तरफ भीड़ गूंगे-बहरों की,
किसे खतिफ बनाऊं किसे ख़िताब करूँ!
उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है,
बहुत हसीं है दुनियां इसे ख़राब करूँ!
में करवटों के नए साए पर लिखूं शब्द भर,
ये इश्क है तो कहाँ से नदियाँ साफ करूँ!!
(3)
झूंठ से सच से जिससे भी यारी रखें,
आप तो अपनी तकरीर ज़ारी रखें!
इन दिनों आप मालिक है बाज़ार के,
जो भी चाहें वो कीमत हमारी रखें!
आपके पास चोरों की फेहिस्त है,
सब पे दस्ते करम बारी-बारी रखें!
सैर के वास्ते और भी देश हैं,
रोज़ तैयार अपनी सवारी रखें!
वो मुकम्म्मल भी हों ये ज़रूरी नहीं,
योजनाएं मगर ढेर सारी रखें!!
(4)
तेरी हर बात मुहोब्बत में गवांरा करके,
दिल के बाज़ार में बैठे है खसारा कर के!
आसमानों की तरफ फेंक दिया है मेने,
चंद मिटटी के चरागों को सितारा कर के!
में वो दरिया हूँ की हर बूंद भंवर है जिसकी.
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा कर के!
आते जाते हैं कई रंग मेरे चहरे पर,
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के!
मुल्तज़िर हूँ की सितारों की ज़रा आँख लगे,
चाँद को छत पर बुला लूँगा इशारा कर के!!
(5)
किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है,
आप तो अन्दर है.. ये बाहर कौन है!!
शहरों में तो बारूदों का मौसम है,
गाँव चलों ये अमरूदों का मौसम है!!
(6)
राज़ जो कुछ हो इशारों में बता भी देना,
हाथ जब उनसे मिलाना..तो दबा भी देना!!
वैसे इस ख़त में कोई बात नहीं है,
फिर भी अह्तियातन, इसे पढलो…तो जला भी देना!!
(7)
मेरी सांसों में समाया भी बहोत लगता है
और वही शक्श पराया भी बहोत लगता है!!
उस से मिलने की तमन्ना भी बहोत है,
लेकिन आने-जाने में किराया भी बहोत लगता है||
(8)
फैसला जो कुछ भी हो मंज़ूर होना चाहिए,
जंग हो या इश्क हो भरपूर होना चाहिए!!
कट चुकी है उम्र सारी जिनकी पत्थर तौड़ते,
अब तो इन हाथों में कोहिनूर होना चाहिए||
(9)
हम अपनी जान के दुसमन को अपनी जान कहते हैं,
मोहोब्बत की इसी मिटटी को हिन्दुस्तान कहते हैं!!
जो ये दिवार का सुराख़ है… साजिश का हिस्सा है,
मगर हम इसको अपने घर का रोशनदान कहते हैं!!
जो दुनियां को सुने दे उसे कहते हैं ख़ामोशी,
जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते हैं!!
मेरे अन्दर से एक-एक कर के सब कुछ हो गया रुखसत,
मगर एक चीज बाकी है जिसे इमान कहते हैं!!
(10)
सिर्फ खंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए,
ए खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए!!
मैंने अपनी खुश्ख अंकों से लहू छलका दिया,
एक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिए!!
(11)
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहे,
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे!!
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम,
आंधी से कोई कह दे की औकात में रहें!!
(12)
सबको रुसवा बारी-बारी किया करो,
हर मौसम में फतवे ज़ारी किया करो!!
रोज़ वही एक कौशिश जिंदा रहने की,
मरने की भी कोई तैयारी किया करो!!
चाँद ज्यादा रोशन है तो रहने दो,
जुगनू भैया जीमत भारी किया करो!!
“आप पढ़ रहें हैं Rahat Indori Shayari हिंदी में “
(13)
अँधेरे चरों तरफ साएँ-साएँ करने लगे,
चिराग हाथ उठाकर दुआएं करने लगे!
सलीका जिनको सिखाया था हमने चलने का,
वो लोग आज हमें दाएं-बाएँ करने लगे!!
तराकी कर गए बिमारियों के सौदागाए,
ये सब मरीज़ है जो अब दवाएं करने लगे!!
अजीब रंग था मजलिस का… खूब महफिल थी,
सफ़ेद पोश उठे और काएं-काएं करने लगे!!
(14)
कभी अकेले में मिलकर झंजोड़ दूंगा उसे,
जहाँ-जहाँ से वो टुटा है, जोड दूंगा उसे!!
वो मुझे छोड़ गया ये कमाल है उसका,
इरादा मैंने किया था की छोड़ दूंगा उसे!!
पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज,
कभी जो हाथ लगा निचोड़ दूंगा उसे!!
मज़ा चखा के ही माना हूँ में भी दुनियां को,
समझ रही थी की ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे!!
“Rahat Indori Mushaira“
(15)
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया,
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया!!
अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब है,
लोगों ने पूछ-पूछ के बीमार कर दिया!!
दो गज़ सही पर ये मेरी मिल्कियत तो है,
ऐ मौत तूने मुझे ज़मीदार कर दिया!!
(16)
मेरे हुजरे में नहीं और कहीं पर रख दो,
आसमा लाए हो…ले आओ, ज़मी पर रख दो!
अब कहाँ ढूंढने जाओगे हमारे कातिल,
आप तो क़त्ल का इलज़ाम हमीं पर रख दो!!
मैंने जिस ताख पे कुछ टूटे दीए रखे हैं,
चाँद तारों को भी ले जा के वहीँ पर रख दो!!
(17)
उसकी कत्थई आँखों में है जंतर-मंतर,
चाकू-वाकू, छुरियां-वुरियाँ, खंजर-वंजर सब!!
जिस दिन तुम रूठी, मुझसे रूठे हें हैं,
चादर-वादर, तकिया-वाकिया, बिस्तर-विस्तर सब!!
मुझसे बिछड कर वो भी कहाँ पहले जैसी है,
फीके पड गए कपडे-वपड़े, जेवर-वेवर सब!!
(18)
अगर खिलाफ है तो होने दो, जान थोड़े हैं…
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है!
लगेगी आंग तो आएँगे घर कई ज़द में,
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है!!
हमारे मुह से जो निकले वही सदाकत है,
हमारे मुह में तुम्हारी जुबां थोड़ी हे!!
जो आज साहिबे मसनद है… कल नहीं होंगे,
किराएदार है ज़ाती मकान थोड़ी है!!
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है!!
(19)
अभी गनीमत है सब्र मेरा, अभी लबालब भरा नहीं हूँ!
वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उससे कहो में मरा नहीं हूँ!!
वो कह रहा है की कुछ दिनों में मिटा के रख दूंगा नस्ल तेरी,
है उसकी आदत, डरा रहा है, है मेरी फितरत डरा नहीं हूँ!!
(20)
बनके एक हादसा बाज़ार में आ जाएगा,
जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा!!
चौर उच्चकों की करो क़द्र,
मालूम नहीं कल कौन किसकी सरकार में आ जाएगा!!
नई दुकानों के चक्कर से निकल जा,
वरना घर का सामान भी बाज़ार में आ जाएगा||
(21)
सिर्फ खंजर ही नहीं आखों में पानी चाहिए,
ऐ खुदा दुसमन भी मुझको खानदानी चाहिए
(22)
फूलों की दुकाने खोलो खुशबू का व्यापार करो,
इश्क खता है तो ये खता एक बार नहीं सौ बार करो!!
(23)
ज़िन्दगी की हर कहानी बेअसर हो जाएगी,
हम ना होंगे तो ये दुनियां दरकदर हो जाएगी!
पाँव पत्थर कर के छोड़ेगी गर रुक जाएगी,
चलते रहिये तो ज़मीं भी हमसफ़र हो जाएगी!!
(24)
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है,
नई हवाओं की सौबत बिगाड़ देती है!!
जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नहीं होते,
सज़ा न देके अदालत बिगड़ देती है!!
ये चलती फिरती दुकानों की तरह लगते हैं,
नए अमीरों को दौलत बिगड़ देती है!!
(25)
सुला चुकी थी ये दुनियां, थपक-थपक के मुझे!
जगा दिया तेरी एक पाज़ेब ने खनक के मुझे!!
कोई बताए के में इसका क्या इलाज करूँ,
परेशां करता है ये दिल धड़क-धड़क के मुझे!!
(26)
सरहदों पर बहुत तनाव है क्या,
कुछ पता तो करो चुनाव है क्या!!
खौफ बिखरा है दौनों समतों में,
तीसरी सम्म्प्त का दबाव है क्या!!
(27)
अन्दर का ज़हर चुम लिया धुल के आ गए,
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए!!
सूरज से जंग जितने निकले थे बेवकूफ,
सारे सिपाही मॉम के थे घुल के आ गए!!
(28)
इश्क में जीत के आने के लिए काफी हूँ,
में अकेला ही ज़माने के लिए काफी हूँ!!
मेरे हर हकीकत को मेरी खाख समझने वाले,
में तेरी नींद उड़ाने के लिए काफी हूँ!!
मेरे बच्चों मुझे दिल खोल के तुम खर्च करो,
में अकेला ही कमाने के लिए काफ़ी हूँ!!
एक अख़बार हूँ औकात ही क्या मेरी,
मगर शहर में आग लगाने के लिए काफी हूँ!!
(29)
चलते फिर्तेहुए महताब दिखाएँगे तुम्हें,
हमसे मिलना कभी पंजाब दिखाएँगे तुम्हे!!
चाँद हर छत पे है सूरज है हर एक आँगन में,
नींद से जागो तो कुछ ख्वाब दिखाएँगे तुम्हे!!
पूछते क्या हो की रूमाल के पीछे क्या है,
फिर किसी रोज़ ये सैलाब दिखाएंगे तुम्हें!!
(30)
बुलाती है मगर जाने का नहीं,
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं!!
मेरे बेटे किसी से इश्क कर,
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं!!
कुशादा ज़र्फ़ होना चाहिए,
झलक जाने का, भर जाने का नहीं!!
सितारे नौच कर ले जाऊंगा,
में ख़ाली हाथ घर जाने का नहीं!!
वो गर्दन नापता है, नाप ले…
मगर ज़ालिम से डर जाने का नहीं!!
“Rahat Indori Kavita”
जो मेरा दोस्त भी है, मेरा हमनवा भी है
वो शख्स, सिर्फ भला ही नहीं, बुरा भी है
मैं पूजता हूँ जिसे, उससे बेनियाज़ भी हूँ
मेरी नज़र में वो पत्थर भी है खुदा भी है
सवाल नींद का होता तो कोई बात ना थी
हमारे सामने ख्वाबों का मसअला भी है