साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए “Poem on Lockdown | लॉकडाउन पर कविता“लेकर आएं हैं आशा है आप सभी अपने-अपने घरों में सुरक्षित होंगे|
Poem on Lockdown | लॉकडाउन पर कविता
हर रोज़ सन्नाटा यहाँ हर रोज बढ़ते हैं फासले,
रोज मोतें हो रही, हर रोज़ बढ़ते मामले!
वो वक़्त के मजदुर है साहब पर वक़्त से मजबूर है
सभी जगह लग गए ताले, वो जाएं कहाँ जो मीलों दूर है!!
जीवन की गति अवरुद्ध है, गतिरुद्ध है सारा शहर…
हर रोज बेबसी है, हर रोज़ बस है कोरोना का कहर!!
आना जाना हुआ बंद, बंद हुई सारी यात्राएं,
घरों में कैद होकर यह व्यथा अब किसे सुनाएं!!
पहले सी दिखती नहीं अब रौनकें बाज़ार की,
हर जगह मंदी पड़ी है व्यापै की!!
Poem on Lockdown | लॉकडाउन पर कविता
सन्नाटे का शोर है
सन्नाटे का शोर है
कोरोना का जोर है
धरती सूनी ,सूना अंबर , मानव है कैद घरों के अंदर ।
लॉकडाउन का जोर है
सन्नाटे का शोर है ।
लॉकडाउन का पालन कर हंसते – हंसते
हाथ किसी से ना मिला करले नमस्ते ।
दूर . दूर रहकर भी निभाओ रिश्ते
इस चुनौती को स्वीकार करो हंसते – हंसते ।
सन्नाटे का शोर इक दिन मिट जाएगा
जब विश्व से कोरोना का कहर हट जाएगा ।
Poem on Lockdown | लॉकडाउन पर कविता
“प्रभु और मानव संवाद “
प्रभु आई तेरे द्वार करो स्वीकार अरज है हमारी,
प्रभु दूर करो महामारी।।
चारों ओर हाहाकार मचा,
कोरोना का तांडव है मचा।।
प्रभु वायरस से मुक्त कराओ,
हमे इससे बचाओ, अरज है हमारी प्रभु राखो लाज हमारी।।
प्रभु मानव हैलाचार पडा,
सबका व्यापार है ठप्प पडा।।
प्रभु दूर करो ये तबाही,
प्रभु मिटाओ ये महामारी।।
प्रभु सूनी धरती सूना अंबर,
मानव है कैद घरो के अंदर।।
अब हम है लाचार,
आप ही करो उद्धार।।
प्रभु दूर करो महामारी
तब प्रभु ने कहा – हे मानव !!
मैने धरती पर तुम्हें भेजा था,
पर सेवा का उपदेश दिया।।
तूने मानी ना बात हमारी
मै कैसे करूं मदद तुम्हारी।।
तूने धरती पर अत्याचार किया,
भ्रष्टाचार किया दुराचार किया।।
अब दंड की पारी तुम्हारी,
मै कैसे करूं मदद तुम्हारी।।
नारी का तूने अपमान किया,
कन्याओं से दुराचार किया।।
बढ गई थी ताकत तुम्हारी,
इसलिये औकात दिखाई तुम्हारी ।
मैने मानवता का तुम्हें ज्ञान दिया
तुमने जात-पात मे बांट दिया।।
मानव ने मानव पर अत्याचार किया,
सारी प्रकृति को तूने वीरान किया।।
तूने किसी की ना देखी लाचारी,
अब भुगतने की तेरी बारी।।
मैने पहले भी तुम्हें चेताया था,
बद्रीनाथ मे तांडव मचाया था।।
पर तूने ना दिखाई समझदारी,
तू भी समझ मेरी लाचारी।।
अंबर मे तूने छेद किया,
धरती को भी तूने भेद दिया।।
मैने लाख तुम्हें सचेत किया,
पर तूने मुझे ही चुनौती दे डाली।।
अब जात-पात का भेद मिटा,
मानवता के गुण मन मे जगा।।
माता-पिता का मान बढा,
मातृभूमि का सम्मान बढा।।
मुझसे टकराने की तू मत कर तैयारी,
तभी मदद करुंगा तुम्हारी।।
Poem on Lockdown | लॉकडाउन पर कविता
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