Hindi Story for Children | प्रभु इच्छा
साथियों, कई बार हमने अपने किसी परिचित से यह कहते हुए ज़रूर सुना होगा की “प्रभु इच्छा”! आज हम आपको इस कहानी “Hindi Story for Children | प्रभु इच्छा” के माध्यम से यही बताने का प्रयत्न कर रहें हैं की भगवान् जो कुछ भी करता है अच्छे के लिए ही करता है|
एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्मा थे| वे गाँव-गाँव में घूमकर अपने ज्ञान की गंगा पुरे देश में बहाया करते थे| वे किसी भी गाँव में अपना डेरा डालते फिर वहां के लोगो में ज्ञान रूपी गंगा का समावेश करते और अगले गाँव की और निकल पड़ते|
एक बार महात्मा घूमते-घूमते एक शहर के पास पहुंचे| लेकिन रात हो जाने के कारन शहर का दरवाज़ा बंद हो गया था| महात्मा ने रात वहीँ व्यतीत करके सुबह शहर में जाने का विचार किया और वहीँ दरवाज़े के पास बिछोना बिछाकर लेट गए|
उसी रात लम्बी बीमारी के चलते उस राज्य के राजा की म्रत्यु हो गई| राजा के कोई संतान नहीं थी| इसीलिए राजगद्दी पर बेठने के लिए पूरा राजपरिवार झगड़ने लगा| सभी राजा के अगले वहिस होने का दावा करने लगे| राजगद्दी के लिए होने वाले झगडे का कोई हल न निकलते देख राजदरबारियों ने एक अनोखा निर्णय लिया|
राजदरबारियों ने सर्वसम्मिति से यह निर्णय लिया की अगले दिन सुबह शहर का दरवाजा खुलने पर जो व्यक्ति सबसे पहले शहर के अन्दर कदम रखेगा उसी को राज्य का राजा घोषित कर दिया जाएगा| सभी ने राजदरबारियों के इस निर्णय को स्वीकार कर लिया|
अलगे दिन सुबह जैसे ही शहर का दरवाजा खुला, महात्मा अपना बिछोना उठा कर शहर के अन्दर की और चल पड़े| जैसे ही महात्मा ने शहर के अन्दर कदम रखा पूरा शहर महात्मा की जय-जयकार करने लगा| राज दरबारी महात्मा को आदर पूर्वक महल में लेकर आए| महात्मा को समझ नहीं आ रहा था की यह सब क्या हो रहा है|
महात्मा ने राजदरबारियों से इस आदर सत्कार और जयजयकार का कारण पुछा तो राजदरबारियों ने महाराज की मृत्यु के बाद पनपे विवाद और विवाद के हल के लिए सबसे पहले शहर आने वाले व्यक्ति को राजा बनाने की बात महात्मा जी को बता दी|
महात्मा जी को पूरी बात समझ आ गई| उन्होंने राज्य की प्रजा और राजदरबार द्वारा दीए गए आदर-सत्कार को स्वीकार किया और स्नान करके राजा की पोशाक पहन ली| राज गद्दी पर बेठने के बाद महात्मा ने नोकरों को एक बक्सा लाने का आदेश दिया और बक्से में अपनी धोती, पीताम्बर और वस्त्र रख कर उसे बंद कर सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया|
अब महात्मा एक राजा की तरह अपना राज-पाठ चलाने लगे| महात्मा जी को धन, लोभ और वैभव से कोई मोह तो था नहीं सो वे निष्काम भाव से इस कार्य को प्रभु इच्छा समझ कर राज्य की सेवा करने लगे| महात्मा जी के राज-पाठ सम्हालने के बाद राज्य की प्रजा ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन यापन करने लगी जिसके परिणाम स्वरुप कुछ ही दिनों में राज्य की काफी उन्नति हो गई|
आप पढ़ रहें हैं कहानी “प्रभु इच्छा – Hindi Story for Children”
अब राज्य में कोई भी व्यक्ति दुखी नहीं था| पूरा राज्य महात्मा जी के राजा बनने से खुश था| राज्य की उन्नति से राज्य का खजाना भी भर गया|
राज्य की खुशहाली और उन्नति देखकर आस पास के राज्य के राजाओं की नज़र राज्य पर पड़ने लगी| उन्होंने सोचा की महात्मा जी को राज करना तो आता है लेकिन युद्ध करना नहीं| अगर महात्मा जी के राज्य पर आक्रमण कर दिया जाए तो इतने सम्रद्ध राज्य को आसानी से जीत लिया जा सकता है|
बस यही सोच कर राज्य के पडोसी राजा ने राज्य पर चढाई कर दी| राज्य की और दसरे राज्य की सेना आते देख सेनापति ने राजा को पडोसी राज्य के आक्रमण की सुचना दी| सेनापति की बात सुनकर महात्मा जी ने किसी भी तरह की सैन्य कार्यवाही करने से इनकार कर दिया और कहा “धन-सम्पदा के लिए प्राणों की आहुति देना का कोई ओचित्य नहीं है”|
कुछ ही देर में सेनापति महात्मा के पास फिर समाचार लेकर आया की, महाराज! क्षत्रु की सेना राज्य की सीमा में प्रवेश कर चुकी है, अगर आप आक्रमण का आदेश नहीं देंगे तो क्षत्रु राज्य में प्रवेश कर जाएगा| सेनापति के बात सुनकर महात्मा ने फिर किसी भी प्रकार की सेन्य कार्यवाही से इंकार कर दिया|
जब पडोसी राज्य की सेना राज्य के समीप आ गई तो महात्मा जी ने सेनापति के हाथों “यहाँ आने का कारण बताने का सन्देश भिजवाया”| महात्मा का सन्देश पाकर पडोसी राज्य के राजा ने सन्देश भिजवाया की, “हम यहाँ आपका राज्य लेने आए हैं”
महात्मा मुस्कुराए और बोले, “राज्य के लिए युद्ध करना और इतने सरे सैनिकों का बलिदान लेना सही नहीं है| धन-सम्पदा और राज-पाठ के लिए युद्ध करना कतई सही नहीं हैं| अगर तुम इस राज्य की सेवा करना चाहते हो तो में ख़ुशी-ख़ुशी यह राज्य तुम्हें सोंपता हूँ|”
महात्मा ने उसी वक़्त सेनिकों को वह बक्सा लाने का आदेश दिया| बक्से से उन्होंने अपने साधू का वेश निकाला, हाथों में कमंडल लिया और पडोसी राज्य के राजा को राज्य सोंपते हुए कहा, “इतने दिनों तक इस राज्य की सेवा मैंने की अब आप करें…. जब में इस राज्य में आया था तब इस राज्य को सम्हालने वाला कोइ नहीं था अब आप इ राज्य को सम्हालने की ज़िम्मेदारी ले रहें हैं तो में फिर से पभु कार्य में लग पाउँगा| आपका बहुत-बहुत धन्यवाद|”
राजा को महात्मा के साधुवाद ने इतना प्रभावित किया की राजा ने महात्मा के राज-पाठ को अपने हाथों में लेकर राज्य का पूर्ण व् सुचारू रूप से गठन किया| देखते ही देखते वह राज्य देश का सबसे खुशहाल राज्य बन गया|
साथियों, कहानी “Hindi Story for Children | प्रभु इच्छा” का उद्देश्य यह नहीं है की क्षत्रु के सामने अपना सबकुछ रख दो बल्कि कहानी का उद्देश्य यह है की महात्मा की तरह जो भी काम सामने आ जाए उसे निष्काम भाव से प्रभु इच्छा समझ कर अच्छे से करो| सही मन से किया गया काम कभी भी गलत परिणाम लेकर नहीं आता|
प्रभु इच्छा | Hindi Story for Children
Hindi Story for Children | लालच का फल
साथियों, हम सभी यह बातभली भांति जानते हैं की लालच बुरी बला है| लेकिन फिर भी हम जाने अंजाने इस लालच के जाल में फास ही जाते हैं| आज हम इस कहानी के “Hindi Story for Children | लालच का फल” माध्यम से आप सभी को एक बार फिर लालच से होने वाले नुकसानों से अवगत कराने जा रहें हैं|
एक गाँव में एक व्यापारी रहता था| व्यापारी का कारोबार काफी बड़ा था| आस-पास के गाँव में भी व्यापारी का व्यापर फैला हुआ था| व्यापारी हमेशा अपने साथ अपने एक नौकर को रखता था| व्यापारी जब भी व्यापार के सिलसिले में किसी दुसरे गाँव में जाता तो हमेशा अपने नौकर को अपने साथ ले जाता था|
एक बार व्यापारी अपने नौकर के साथ पास ही के एक गाँव में व्यापर के सिलसिले में जा रहा था| तभी रास्ते में चलते-चलते व्यापारी की अपने नौकर से बहस हो गई|
कुछ ही देर में बहस इतनी बढ़ गई की व्यापारी ने अपने नोकर पर चिल्लाते हुआ कहा – मुर्ख ! तू जब मेरे पास आया था तब बिल्कुल भी काम का नहीं था, तू तो पूरा गधा था, मैंने तूझे सारा काम सिखा कर गधे से इन्सान बनाया… फिर भी तू मेरा कहा काम आज भी सही से नहीं करता फिर तुझे गधे से इन्सान बनाने का क्या फायदा|
तभी पास ही जाने वाले एक यात्री ने व्यापारी और उसके नौकर के बिच होने वाली बहस को सुन लिया और सोचा, “ये आदमी गधे को इन्सान बना देता है, अवश्य ही यह कोई न कोई जदुगर होगा|
यात्री व्यापारी के पास आया और बोला, – महोदय! में पास ही के एक गाँव में रहता हूँ और गधों का व्यापार करता हूँ| मेरे पास कई गधे हैं लेकिन में इन गधों से तंग आ गया हूँ| आज में इन दो गधों को बेचने के उद्देश्य से पास के गाँव जा रहा था तभी मैंने आपके गधे को इन्सान बनाने की बात सुन ली| में आपको मेरे दोनों गधे सोंप रहा हूँ कृपा कर आप मेरे दोनों गधों को इन्सान बना दें|
व्यापारी यात्री की बात सुनकर पूरा माजरा समझ गया| व्यापारी शुद्ध बनिया था| उसने यात्री की बात सुनी और बोला, भाईजी आपने बिलकुल सही पहचाना| में गधों को इन्सान बना देता हूँ| में आपको इन दोनों गधों को भी इन्सान बना दूंगा, लेकिन इसके लिए आपको थोड़े पैसे खर्च करना पड़ेंगे|
आप पढ़ रहें हैं कहानी “लालच का फल – Hindi Story for Children”
यात्री ने व्यापारी की शर्त को मान लिया और अपने दोनों गधे व्यापारी को सोंप दीए| व्यापारी ने दोनों गधों को ले लिया और यात्री से एक महीने बाद आने को कह दिया| यात्री व्यापारी की बात सुनकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर चला गया| इधर व्यापारी ने दोनों गधों को जाकर बाजार में मोटे दामों पर बेंच दिया|
एक महीने बाद जब यात्री व्यापारी के पास गधे के बदले में दो इन्सान लेने आया तो व्यापारी बोला, “भाईजी मेने इन्सान बनाने के लिए दोनों गधों पर मसाला चढ़ा दिया है लेकिन तुम्हारे गधे इन्सान बनने में बहुत ही ज्यादा समय ले रहें हैं| अभी गधों को इन्सान बनने में कुछ वक़्त और लगेगा| तुम कुछ वक़्त बाद आकर दोनों इंसानों को ले जाना|
व्यापारी की बात सुनकर यात्री फिर से अपने गाँव चला गया और एक महीने बाद पुनः लौटा और गधे के बदले में बने इन्सान देने की बात कही| यात्री को देखकर व्यापारी बोला, “अरे मेने तुम्हें कुछ वक़्त बाद आने को बोला लेकिन तुम तो एक महीने बाद आ रहे हो| तुम्हारे गधे तो कब से इन्सान बन गए हैं और उनकी नोकरी भी लग गई है|
एक गधा तो शिक्षक बन गया है और स्कूल में बच्चों को पढ़ता है| दूसरा गधा डाक्टर बन गया है और अस्पताल में मरीजों का उपचार करता है| तुम देरी से आए इसलिए दोनों पढ़ लिख कर नौकरी पर लग गए हैं अब तुम जानों तुम्हें क्या करना है….
व्यापारी की बात सुनकर यात्री को बड़ा दुःख हुआ| वह घांस लेकर अपने दोनों गधों को लेने निकल पड़ा| सबसे पहले यात्री स्कूल गया और वहां के शिक्षक को घांस दिखाते हुए बोला, “आ जा में तेरा मालिक हूँ…आआ ले यह घांस ले ले|” यात्री को स्कूल में इस तरह की हरकतें करते देख शिक्षक को लगा की स्कूल में कोई पागल घुस आया है और शिक्षक ने उसे स्कूल से बाहर निकलवा दिया|
अब यात्री घांस लेकर गाँव के अस्पताल में पहुँच गया और वहां के डॉक्टर को घांस दिखाते हुए बोला, “मैंने तुझे गधे से इन्सान बनाया है अब तू मुझे ही भूक गया… देख में तेरे लिए घांस लेकर आया हूँ आ जा मेरे पास आ जा|
गाँव वालों ने जब यात्री को डॉक्टर के साथ इस तरह की हरकतें करते हुए देखा तो उन्होंने भी यात्री को पागल ही समझा और यात्री को गाँव के बाहर निकाल दिया|
अब यात्री सब तरह से थक हार कर फीर से उस व्यापारी के पास पहुंचा जिसको उसने अपने कीमती गधे इन्सान बनाने के लिए दी थे|
यात्री व्यापारी के पास पहुंचा और बोला, “महोदय! मेने आपको अपने सबसे कीमती गधे इन्सान बनाने के लिए दी थे अब इन्सान बनने के बाद वे दोनों मुझे पागल कहते हैं|
व्यापारी मुस्कुराया और बोला, “भाई जी मैंने तो पहले ही बोला था की आपने आने में बहुत देर कर दी अब गधों को काबू में तो रखा जा सकता हैं लेकिन इंसानों को काबू में कैसे रखा जा सकता है| इसीलिए दोनों अपने मन मुताबिक अपने अपने काम में लग गए|
व्यापारी की बात सुनकर यात्री मुह लटकाकर अपने गाँव लौट गया|
तो दोस्तों कहानी का सारांश यही है, की “आज के इस जीवन में सभी लालच के चक्कर में दिनों दिन लालची होते जा रहें हैं| इस लालच में वे प्रकृति के बनाए नियमों को भी ताक पर रखने में परहेज़ नहीं करते| इसलिए हमें लालच छोड़कर हमेशा ईमानदारी और संयम से काम करना चाहिए|”
very nice story sir..
Thank you very much…
Gjjb ki story