धनवान चुहा | Dhanwan Chuha Moral Stories in Hindi
धनवान व्यक्ति का आत्मविश्वाश और तेज अलग ही झलकता है, जबकि निर्धन व्यक्ति दुर्बल और लाचारी से ग्रस्त होता है| इसी कहावत को बयां करती आज की हमारी यह कहानी धनवान चुहा | Dhanwan Chuha Moral Stories in Hindi
एक बार की बात है| एक जंगल में एक सन्यासी, घास-फूस की एक कुटिया बना कर रहता था| जंगल के पास एक नगर था, जहाँ से सन्यासी रोज भिक्षा मांग कर लता और अपना जीवन निर्वाह करता था| भिक्षावृति में सन्यासी को कभी ज्यादा अन्नं तो कभी कम अन्नं मिलता था| सन्यासी रोज जब अपने कमंडल में नगर से अन्नं मांग कर लाता तो उस अन्नं में से कुछ अन्न आने वाले कल के लिए बचा कर एक पात्र में भरकर उस पात्र को एक ऊँची खूंटी पर टांग देता और भगवान् की पूजा पाठ में लगा रहता| बस सन्यासी की रोज की यही दिन चर्या थी|
उसी कुटिया के पास एक चूहा भी रहता था| एक दिन उस चूहे को सन्यासी के अन्न के भण्डार का पता चल गया| बस फिर क्या था रोज वह चूहा सन्यासी से नजर बचा कर सन्यासी का अन्न खा जाता था| रोज-रोज चूहे के अन्न खा जाने से सन्यासी परेशान हो गया| चूहे को वहां से भगाने के लिए सन्यासी ने बहुत सारे जतन किये, लेकिन चूहा वहां से टस से मस ना हुआ| एक दिन सन्यासी चुहे को भगाने के लिए बाज़ार से एक लाठी ले आया| अब जब भी चूहा अन्न के उस भंडार के आसपास आता, सन्यासी जोर से लाठी बजता और चूहा लाठी के डर से वहां से भाग खड़ा होता| लेकिन पेट की आंग चूहे को ज्यादा देर तक अन्न से दूर ना रख पाती| अब जब सन्यासी रात को सो जाता तो चूहा चुपके से आकर सन्यासी का अन्न खा जाता था| चूहे के इस तरह अन्न खा जाने से सन्यासी फिर परेशान रहने लगा|
एक दिन सन्यासी के यहाँ एक गुरुवर आए| रात को सन्यासी ने बड़े आदर भाव से गुरुवर को भोजन कराया और शेष बचा हुआ भोजन एक पात्र में भरकर खूंटी पर टांग दिया| अब सन्यासी गुरुवर के साथ बेठ कर शाश्तार्थ करने लगा| बिच-बिच में सन्यासी जमीन या दिवार पर लाठी खटखटा देता| सन्यासी को ऐसा करते देख गुरुवर को लगा कि सन्यासी उसकी बातों में रूचि नहीं ले रहा है, इस बात को गुरुवर ने अपना अपमान समझा और कुछ समय बाद ही गुरुवर ने मौन धारण कर लिया|
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गुरुवर के नाराज होने को सन्यासी ने भांप लिया और गुरुवर से हाथ जोड़ते हुए बोला, “गुरुवर आप चुप क्यों हो गए, आप अपनी बात जारी रखो…में आपकी बात बडे ध्यान से सुन रहन हूँ| गुरुवर मेरे इस तरह के व्यहवार को आप अन्यथा ना लें, दरअसल में एक चूहे से बड़ा परेशान हूँ| इसलिए इस तरह लाठी बजाकर उसे भगाने का प्रयास कर रहा हूँ| मेने जो बचा हुआ अन्न पात्र में भरकर ऊपर खूंटी पर टांगा है, यह चूहा वह सारा अन्न खा जाता है|
गुरुवर पात्र को देखते हुए बोले, “आश्चर्य है! चूहा इतना ऊपर चढ़ केसे जाता है, जबकि चूहे में काफी कम शक्ति होती है|
गुरुवर की बात सुनकर सन्यासी ने कहा, “आपकी बात बिलकुल ठीक है गुरुवर, लेकिन में जो कह रहा हूँ वह भी सत्य है| इसीलिए इस चूहे को पात्र से दूर रखने के लिए में व्यर्थ में ही लाठी को दरवाजे पर खटखटा देता हूँ|
सन्यासी की बात सुनकर गुरुवर ने कहा, “बिना किसी कारन के सिर्फ अन्न के लालच में तो वह चूहा इतना ऊपर चढ़ने का परिश्रम नहीं कर सकता, जरुर इसके पास कुछ गुप्त शक्ति है जिसके बल पर यह चूहा इतना ऊपर चढ़ जाता है| बल्कि मुझे तो ऐसा लगता है, कि जरुर इस चूहे के पास धन का भंडार जरुर होना चाहिए|
गुरुवर की बात सुनकर सन्यासी ने गुरुवर से प्रश्न किया, “भला इस चूहे को धन की क्या आवश्यकता और इस चूहे का धन से क्या सम्बन्ध|”
गुरुवर ने सन्यासी से कहा, “सम्बन्ध है शिष्य, इस दुनियां में धनी आदमी ही सबसे शक्तिशाली होता है| धन ही उसकी शक्ति का कारण होता है| बड़े-बड़े रजा महाराजाओं की शक्ति भी धन से ही नापी जाती है|
गुरुवर की बात सुनकर अगले दिन सन्यासी ने उस चूहे का पीछा किया, जैसे ही चूहा अपने बिल से निकल कर उस पात्र के पास गया| सन्यासी ने कुदाल से चूहे के बिल को खोद के देखा और बिल से ढेरों सोने की अशर्फियाँ बरामद कर ली| सन्यासी धन के इतने बड़े भंडार को पाकर फुला नहीं समाया|
जब चूहे को अपने धन के भंडार के चले जाने का पता चला तो उस दिन से ही चूहे का सारा बल जानें लगा| अब चूहा अन्न के पात्र को पाने के लिए छलांग तो लगाता लेकिन अन्न के पात्र तक पहुँच नहीं पता| समय के साथ-साथ धन के चले जाने के गम में चूहा उत्त्साहविहीन और दुर्बल हो गया और कुछ ही समय बाद ही चूहे की मौत हो गई|
तो मित्र कहानी का तर्क यह है, की धन ही इन्सान को शक्तिशाली और पंडित बनाता है| धनवान को कोई भी बुरा नहीं कहता, धनवान व्यक्ति के हजारों मित्र होतें है|लेकिन एक बार धन के चले जाने के बाद धनवान व्यक्ति की रातों की नींद भी उड़ जाती है और बहुत ही जल्द उसकी हालत भी उस चूहे जैसी ही हो जाती है|
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