साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए “Poem on Mother in Hindi | माँ पर कविता” लेकर आएं हैं जिसे पढ़कर आपके अपने माँ के प्रति अहसास और भी ज्यादा बढ़ जाएगा! आपसे अनुरोध है की अगर आपको हमारी यह पोस्ट पसंद आए तो इसे जरुर शेयर करें!!
“Poem on Mother in Hindi”
“कौन कहता है मेरी कोई सहेली नही”
जैसे तुम्हारी आंखें मुझसे कहना चाह रही हो,
मां तू अब अकेली नहीं है कौन कहता है तेरी कोई सहेली नहीं है
सब तुम्हे अपनी तकलीफ बताते,
कई बार तुम ही तकलीफ हो ये भी कह जाते ,
तुम मन ही मन बहुत रोती ,
खुद को बहुत कोसती,
पर मां अब मै तुम्हारे गम बाटुंगी,
तुम रोगी,तो मैं भी रात जाग कर काटूंगी
कभी में तुझे सताऊंगी,खाने के लिए खूब भागाऊंगी,
पर मां मेरा वादा है ,ये दोस्ती में अंत तक निभाऊंगी
तुम्हे भी मुझसे एक वादा करना होगा,
ये एक तरफा दोस्ती नहीं है,ये विश्वास दिलाना होगा
में एक लड़की हूं इसलिए मेरी इच्छाएं दबेगी नहीं,
मुझे भी आसमान को छूना है,मेरी पतंग कटेगी नहीं
ये समाज तुम्हे मुझे पढ़ाने से रोकेगा,
कैसी मां हो घर के काम सिखाओ ,ये कह के टोकेगा
पर मां तुम खड़ी रहना ,मेरे लिए अहड़ी रहना
हमने जैसे एक दूसरे से आंखों आंखों में ये वादा कर लिया ,
दिल ही दिल में इरादा कर लिया
अब मुझ में भी जीने का नया जोश आया,
खुद को संभालूंगी ,ये होश आया
मै भी अब अकेली नहीं ,कौन कहता है मेरी कोई सहेली नही
पढ़ें प्रेम शायरी
माँ | Poem on Mother in Hindi for Class 1
माँ,
कुछ ऐसा हो
मैं घर आ जाऊं
सिर रख कर
गोदी में सो जाऊं
माँ,
तुम फिर से
वो गीत सुनाना
गोल बताशे सा
वो चाँद दिखाना
तुम बतलाना, फिरसे माँ
राधा क्यों गोरी थी
और क्यों काले थे
वो नटखट कान्हा
माँ तुम कहना
कैसे चिकनी चुपड़ी
रोटी पर
बिल्लियों की हुई लड़ाई
कैसे बाँट तराज़ू
में आधी-आधी
चट कर जाते थे
वो बंदर मामा
कैसे प्यासे कौवे ने
घड़े में कंकर डाले थे
और एक-एक कंकर पानी का
धीरे धीरे ऊपर आना
माँ,
वो रात के तारे
अच्छे थे
माँ वो चाँद कटोरे
अच्छे थे
माँ,
वो हाँथ की तकिया
अच्छी थी
माँ वो ढेर सी बतियाँ
अच्छी थीं
माँ अच्छे थे
वो सारे सपने
जिसमे लाल पारी
आ जाती थी
सैर करा कर
बादलों की
वो एक खिलौना
दे जाती थी
माँ,
तुम पीठ पर मेरी
थपकी देना
कुछ गुनगुना कर
मुझे सुलाना
आँखें मूँद के
मैं सो जाऊं
तुम हौले से
फिर हाँथ फिराना
उढ़ा के चादर
मखमल सी
माथे पर तुम आशीष
सजाना
सुला के सबको
धीरे से,
फिर धीरे से
चौके में जाना…
माँ,…
याद बहुत
आती है मुझको
गर्म सिकी वो
नर्म सी रोटी
और तुम्हारा
प्लेट में अपनी
बासी रोटी
पर नमक लगाना
माँ,
दूर हूँ तुमसे
तो रात बड़ी ही
लंबी है, सबकुछ जैसे
कि घर बेगाना
खाली -खाली
सा लगता है
भर थाली भी
बिन आपके खाना
वो गोद नहीं है
वो गीत नही हैं
वो न ही दिखते
अब चंदा मामा
माँ,
तुमसे ही
तो जीवन है
और तुमसे ही मैंने
जग पहचाना
माँ, तुमको जाना है
तो जाना है
क्या होता है
निस्वार्थ निभाना
क्यों ईश्वर बनना
आसाँ हैं
और क्यों मुश्किल है
माँ बन पाना
क्यों ईश्वर बनना
आसाँ हैं
और क्यों मुश्किल है
माँ बन पाना ।।
पढ़ें दो टुक शायरी
“माँ हम अब भी बच्चे हैं | Poem on Mother in Hindi for Class 9”
माँ तुमने पाल पोष कर बड़ा क्यू किया?
तेरी गोदी मे बड़े चैन से सो जाते थे।
रोज परियो की कहानियो मे खो जाते थे।
तेरी लोरी सुनते सुनते सो जाते थे।
तेरी एक थपकी से सारे दर्द गायब हो जाते थे।
जब भी किसी बात पे हम रोते थे।
दौड़ कर तुम मुझे अपने सीने से चिपटा लेते थे।
प्यार से चूमते थे गाल मेरे और ।
अपने आँचल मे छिपा लेते थे।
चैन खो गया माँ जबसे अपने पैरो खड़े हुये है।
लोग कहते है कि अब हम बड़े हो गये है।
बड़े क्या हुए जिम्मेदिरियों से दब गये है।
पर तेरे नजर मे अब भी हम बच्चे है।
तू कहती है कि अब भी हम अकल के कच्चे है।
“फिर बच्चा हो जाऊ “
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है।
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई।
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती।
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे,
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी।
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से,
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही।
माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना,
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती।
चलती फिरती आँखों से अज़ाँ देखी है,
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।
पढ़ें दर्दे दिल की शायरी
“ममता का सहारा है तो मुझे क्या गम है”
ग़र ‘माँ की ममता’ न होती |
तो इंसान ना बन पाता मैं ||
ग़र कुछ सपनो की परवाह न होती|
तो इतना दूर ना निकल आता मैं||
माँ तेरे आँचल में सोने को जी चाहता है|
दूरियों का ये समां हर पल रुलाता है||
यहाँ कोई नहीं जो जल्दी घर बुलाए|
यहाँ कोई नहीं जो थपथपा के सुलाए||
इन अल्फाज़ो को बटोरते समय आँखे नम हैं|
पर तेरी ममता का सहारा है तो मुझे क्या गम है||
मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ की बच्चा हो जाऊँ।।
दूर हूँ तो अपने पास बुला ले मुझको,
कीचड़ से लतपत हूँ तो धुला दे मुझको,
माँ तेरी लोरियाँ बिन अब नींद नहीं आती,
गोदी में रख दूँ सिर तो फिर से सुला दे मुझको,
_अजय राजपूत (झाँसी)
माँ
किये हो हज़ारो सफर,
पर ये सफर निराला है…
तुम ने माँ बनने के सफर का,
आज पहला कदम बढ़ाया है!!
बच्चों को संभालना तो,
ये एक हुनर प्यारा है…
पर नौ महीने संभालना कोख में,
ये हुनर सब से आला है!!
देख के तुम्हारी तकलीफ़,
माँ की तकलीफ़ का अंदाज़ा हुआ है…
हुई होगी उसे भी ये तकलीफ़,
जिसने नौ महीने मुझे संभाला है!!
माँ तुम इतना कुछ कैसे कर जाती हो | Poem on Mother in Hindi
जब कोई नहीं समझ पाता मुझे,
तब तुम मुझे कैसे समझ जाती हो!
मेरी बात बिना बताए कैसे जान जाती हो,
हर राज को राज रखना यह कैसे कर लेती हो!!
वो पाँच बजे जगाने के लिए सात बज गए अब तो उठ जा वाला झूठ कैसे बोल जाती हो,
वो खुद थक जाने के बाद भी!!
मैं गरम रोटी बना रही हूँ जल्दी से खाले,
इतनी आसानी से कह जाती हो!!
जब मैं रोउ तो तू तो मेरा राजा बेटा है,
कहकर मुझे सबसे प्यारा महसूस कराती हो!!
जब मार पीट कर मुझे अकेला छोड़ देती हो,
रोएगा तो और माँरुगी कहकर सारा मामला निपटा देती हो!!
माँ तुम इतना कुछ कैसे कर जाती हो॥
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