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Krishna Sudama Story in Hindi

कृष्ण सुदामा | Krishna Sudama Story


मित्रता या फिर यूँ कहें दोस्ती ! एक एसा बंधन है जो हमें बाकि सभी रिश्तों की तरह जन्म से नहीं मिलता| यह एक एसा रिश्ता है जो इन्सान जन्म लेने के बाद खुद बनाता है| पुरानों में दोस्ती की कई कहानियां कही गई है| लेकिन दोस्ती के रिश्ते की सही मिसाल अगर किसी ने पेश की है तो वह कृष्ण-सुदामा ने की है| दोस्ती का असली रंग कृष्ण-सुदामा की दोस्ती का है! इसीलिए आज हम आप सभी दोस्तों के लिए लेकर आएं हैं, दोस्ती की कहानी कृष्ण सुदामा | Krishna Sudama Story


शाम हुई सुदामा घर लौटे, आज भगवान् श्री कृष्ण गाएं चराने नहीं गए हुए थे| आज श्री कृष्ण का जन्मोत्सव था| आज माँ यशोदा ने कृष्ण को घर में ही रोक लिया था|
गोप-बालकों ने सुदामा से पुछा, “मनसुख तुम तो अनंन्य भक्त और प्रिय सखा हो श्री कृष्ण के, फिर आज कृष्ण ने तुम्हें प्रसाद के लिए नहीं पुछा| तुम तो कहते थे गोपाल मेरे बिना अन्न का एक ग्रास भी मुह में नहीं डालते हैं|”
हाँ-हाँ ग्वालों ! ऐसा ही है, लेकिन तुम्हें मुझपर विश्वास कहाँ होगा ? कान्हां तो आज भी मेरे पास आए थे और आज तो कान्हां ने अपने हाथों से मुझे प्रसाद खिलाया|

यह झूंठ है, ” यह कहकर गोप बालक श्री कृष्ण को पकड़ लाए और कहने लगे, लो मनसुख ! अब तो कृष्ण सामने खड़े हैं| श्री कृष्ण से ही पुच लो, आज तो इन्होने दहलीज़ के बहार पांव तक नहीं रखा|”
श्री कृष्ण ने भी गोप बालकों का साथ दिया और कहा, ” हाँ-हाँ मनसुख! तुम्हें भ्रम हुआ होगा, में तो आज घर से बहार निकला तक नहीं|

सुदामा ने मुस्कुराते हुए कहा, “धन्य हो नटवर ! तुम्हारी लीलाएँ अपरम्पार है| लेकिन क्या आप यह बता सकते हैं, कि यदि आज आप मेरे पास नहीं आए तो आपका यह पीताम्बर मेरे पास कहाँ से आ गया ? देख लो, अभी भी मिष्ठान का कुछ अंश पीताम्बर में बंधा हुआ है|”
ग्वालों ने पीताम्बर खोल कर देखा – वही भोग, वही मिष्ठान जो पूजा गृह में था, पीताम्बर में बंधा था| मनसुख को वह कौन देने गया किसी को पता नहीं था|

कृष्ण सुदामा | Krishna Sudama Story


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3 thoughts on “कृष्ण सुदामा | Krishna Sudama Story”

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