Poem in Hindi | शायरी हिंदी में
साथियों नमस्कार, Hindi Short Stories के इस नए अंक Poem in Hindi | शायरी हिंदी में आपका स्वागत है! इस अंक में हम आपको विभिन्न लेखकों द्वारा लिखी गई शायरियों और कविताओं से रूबरू करवाने जा रहें हैं !
Poem in Hindi | शायरी हिंदी में
गुलज़ार
सौंप गज़ल-ए-बहार मुझे गुलज़ार कर दिया,
दे दस्तार मेरा हैरती श्रृंगार कर दिया!
देख जुल्फ़ की घटाएं मेरी आँख न खुली,
मुझे नजरों के ख़त से बीमार कर दिया!!
बन मनसूब की थी मेरे क़त्ल की साजिश,
मेरे रक़ीब ने मुझे खबरदार कर दिया!
सकत बाकी तो थी मरसिया की मुझमें,
दे बख्तर मेरे हाथ, गुनहगार कर दिया!!
यूँ छोड़ उसको, कोई मुझे जान न सका,
भेज खबरें मिरी उसी ने अखबार कर दिया!!
बावजूद ग़म के मैंने चाहा था उसका साथ,
करके दोज़ख उसने हमें बेज़ार कर दिया!!
वो तो भला हुआ मिरी अम्मा ने मख़मूर,
दे आँचल का शामियाना मुझे, ज़मीदार कर दिया..!!
{दस्तार- पगड़ी / रक़ीब- दुश्मन
सकत- सामर्थ्य / मरसिया- शोकगीत
बख्तर- कवच / दोज़ख- नरक}
@अंकेश वर्मा
“वो पिघलती रही”
में जलता रहा
वो पिघलती रही
वो मोम सी हुई
में सूत सा कोई
दूरियां नहीं थी दिलों में कोई
बस में टूटता रहा
वो बिखरती रही
मुलाकातों का सिलसिला
बहुत कम सा रहा
दरमियाँ इश्क में
ये यक़ीनन हुआ…
हम बिछडते गए
प्यार बढ़ता गया…
बातें अब ना के बराबर खो सी गई है
शायद थककर चुपके से सो सी गई है
डर ये भी रहा की…
सिसकियों की आहात न हों
दर्द मुझे होता रहा
आह उसकी निकलती रही
में जलता रहा
वो पिघलती रही
“यश”
यशोदा नाग
पढ़ें हिंदी प्रेम कविता | Poem in Hindi
“अब जीत यहाँ पर किसकी हैं”
मैं हार गया तू हार गया, अब जीत यहाँ पर किसकी हैं,
है चाँद नही निकला छत पर, अब ईद यहाँ पर किसकी है।
ख़ामोश रहूँ या सोर करूँ, अब रीत यहाँ पर किसकी हैं,
सपने वादे सब टूट गया, अब उम्मीद यहाँ पर किसकी है।
हैं आँखो में बहता दरिया, अब नींद यहाँ पर किसकी हैं,
बाक़ी है क्या जो खोना है, अब सीख यहाँ पर किसकी हैं।
मैं हार गया तू हार गया, अब जीत यहाँ पर किसकी हैं।
“मुझको तुम यूँ ही उदास रहने दो”
मुझको तुम यूँही उदास रहने दो।
अपनी यादों को मेरे आस पास रहने दो।।
मत करो कोशिशें दूरियाँ मिटाने की,
ज़मीं को जमीं आसमान को आसमान रहने दो।।
बन जाओ समंदर सा अगर बन सको तो,
लौट कर आएगा ये पहचान रहने दो।।
मुझको तुम यूँही उदास रहने दो।।
“वो बचपन के दिन”
वो बचपन के दिन जाने कहा खो गए ?
हम क्या थे जाने क्या हो गए ?
वो मासूमियत का लहजा वो अदा भोली भाली ,
लड़ते झगड़ते जाने क्या हो गए ?
वो थोड़े से पैसे वो थोड़ी सी चाहत,
ज्यादा खुशियो की खातिर जाने क्या हो गए ?
कुछ कम थी आज़ादी और ज़रुरत कहा थी,
अकेले अकेले अब जाने क्या हो गए ?
वो रूठना मनाना वो दिल ना दुखाना,
जताने की आदत से जाने क्या हो गए ?
ना कल की फिकर थी ना आगे की चिंता
ये कल बनाने में जाने क्या हो गए ?
जो फिर से लौट आये बचपन तो सवाल होगा ,
तुझे ढूँढ़ते ढूँढ़ते जाने क्या हो गए ?
वो बचपन के दिन जाने कहा खो गए ?
हम क्या थे जाने क्या हो गए ?
“बेहतर है खामोश निकल जाना”
वक़्त रहते संभल जाना,
बेहतर है खामोश निकल जाना||
अदबे वफ़ा से मेरा कोई रिश्ता नहीं,
मुमकिन है मेरा हर रोज बदल जाना||
खेल नुमाइश का है और मैं माहिर कहा,
जाहिर है मेरा कुछ नुकसान हो जाना||
मुहब्बत में ना तू कही कायम ना मैं कही ठहरा,
बहुत वाजिब है तेरा उस पार हो जाना मेरा इस पार रह जाना||
रश्म-ए-दूरी
नया इक रिश्ता पैदा क्यों करे हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यों करे हम
ख़ामोशी से अदा हो रश्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यों करे हम
ये काफ़ी हैं कि दुश्मन नहीं है हम
वफ़ादारी का दावा क्यों करे हम
वफ़ा अख़लाक़ कुरबानी मुहब्बत
अब इन लफ़्जो का पीछा क्यों करे हम
हमारी ही तमन्ना क्यों करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यों करे हम
किया था जब लहद लम्हों में हमने
तो सारी उम्र ईफ़ा क्यों करे हम
उठाकर क्यों न फेंके सारी चीजें
फक्त़ कमरो में टहला क्यों करे हम
जो इक नसलें फिरो माया को पहुँचें
वो सरमाया इकठ्ठा क्यों करे हम
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की परवाह क्यों करे हम
बरहना हैं सरे बाज़ार तो क्या
भला अन्धों से पर्दा क्यों करे हम
हैं बासिन्दे इसी बस्ती के हम भी
तो खुद पर भी भरोसा क्यों करे हम
जमा ले खुद ही ना क्यों अपना ढाँचा
तुम्हें रातें मुहैया क्यों करे हम
पड़ी रहने दो इंसानों की लाश
जमीं का भोज़ हलका क्यों करे हम
“कोई गुनाहगार नहीं हूँ “
तलबगार हूँ में तेरे इश्क का कोई गुनाहगार नहीं हूँ,
छुपा लूँ खुद से, खुद के दिल की बातें… में इतना भी समझदार नहीं हूँ!!
बस तेरा और मेरा दिल ना कहे की तेरे प्यार में वफादार नहीं हूँ,
साथ रहे हर दम तेरा, बाकि ज़माने का में कोई कर्ज़दार नहीं हूँ!
की तलबगार हूँ में तेरे इश्क का, कोई गुनाहगार नहीं हूँ!!
तो तुम्हें आना ही नहीं था
जब जाना ही था बिच राह पर छोड़कर तो तुम्हें आना ही नहीं था,
और जब आ ही बसे थे सांसों में मेरी.. तो बिच राह में यौन हाथ छुड़ाना नहीं था!
कभी तुम साथ थे मेरे, साथ बस ये ज़माना नहीं था…
फिर ज़माना भी साथ आया मेरे, तब तक तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं था!!
बेशक तुम तुर चले जाते, लेकिन इतनी दूर चले गए जहाँ से तुम्हें वापस आना ही नहीं था!!
तुमने कुछ तो सोचा होता मेरे बारे में भी, के तेरे दिल के सिवा मेरा कोई मयखाना नहीं था!!
मालूम था तुम्हें की दिल मेरा तेरे सिवा किसी का दीवाना नहीं था!
खो दिया मेने उसे, जिसे मेरी किस्मत में कभी पाना नहीं था!!
जब जाना ही था बिच राह पर छोड़कर तो तुम्हें आना ही नहीं था…
@हरवेन्द्र सिंह
“जुदाई मौत होती है”
सुनो जाना!
जुदाई मौत होती है
कभी फुर्सत मिले तो देखना
पत्तों का गिरना तुम
कि जब शजर से गिर के
जमीन पर आन पड़ते है
तो कैसे रोंदे जाते है
थरथराते रात के खामोश लम्हों में
किसी बेबस अकेली बा-वफ़ा
खामोश लड़की की अभी तुम सिसकियाँ सुनना
कभी कतार से बिछड़े हुए कूनजों के नूहें पे निगाह करना
कि कैसे एक दूजे की जुदाई पर तड़प कर बैन करते है
कभी रूखसत के लम्हों में किसी की आँख से
लड़खड़ाते हुए आँसूओ को देखोगें
तो शायद जान जाओंगे
जुदाई मौत होती है
अभी तुम ने मोहब्बत के
बरसते भींगते मौसम नही देखे
अभी तुम तितलियों के रंग मुट्ठी में छुपाते हो
अभी तुम मुस्कुराते हो
सुनो जाना !
कभी जो ज़िन्दगी ने अजनबी वीरान राहों पर
तुम्हारी ये हँसी छीनी तो फिर आँसू बहाओंगे
और इतना जान जाओगे
कि जुदाई मौत होती है
तुम्हारे लबों को चूमकर गुज़ारना,
आज भी मेरी धड़कन बाधा देता है!
मीठे का ज्यादा सेवन ना भी करू अगर,
तुम्हारे लबों की छुअन मेरी शुगर बढ़ा देता है!
नशीली आँखों का कहर,
कुछ इस कदर बरपाती हो तुम!
मयकदे चला भी जाऊ अगर में,
तुम्हारी आँखों का मचलना मेरी प्यास बढ़ा देता है!!
रिश्तों की तासीर
कुछ रिश्तों की उम्र नहीं देखी जाती
उनकी गहराई, उनकी तासीर देखी जाती है।
माना के तू अब साथ नहीं,मेरे पास नहीं
पर जाना कोई बात नहीं
जिन लम्हों को साथ जिया था हमने
इन पलों में अब वो बात नहीं
दिल के दरवाजे अब भी खुले हैं
पर अब तू किसी और का है
माना कि तू अब साथ नहीं
पर जाना कोई बात नहीं
आज भी तेरी याद हर सुबह आती है
हर शाम तड़पाती है,रात सहलाती है
माना कि अब वो मुलाक़ात नहीं
पर जाना कोई बात नहीं
तू ही तो है जिसने मेरी मोहब्बत को इश्क़ का नाम दिया
तू ही तो है जिसने ज़िंदा लाश को प्राण दिया
तूने ही तो इन लहरों को ठहराव दिया
जितना तेरा बनता था तूने फ़र्ज़ अदा कर दिया
वैसे भी कुछ रिश्तों की उम्र नहीं देखी जाती
उनकी गहराई, उनकी तासीर देखी जाती है।
मेरे इश्क़ में तो आज भी उतनी ही गर्मी और नर्मी है,
माना के तू अब पास नहीं
पर जाना कोई बात नहीं।
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waah….bahut acchi poem hai……..वो बचपन के दिन ye kavita bahut acchi lagi…aur share arne vali poem hai..Thank You
Welcome Abhinav Kumar