पढ़े चांदामेटा छिंदवाड़ा से नटेश्वर कमलेश द्वारा मृत्यु भोज पर लिखी एक मार्मिक कहानी
हिंदी कहानी मृत्यु भोज | Mrityu Bhoj Hindi Story
आखिर क्यों नहीं करना चाहिए मृत्युभोज
महाभारत की एक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण श्रीमद भागवद गीता में कहते हैं, की “आत्मा अजर अमर है, आत्मा का नाश नहीं हो सकता…आत्मा केवल युगों युगों तक शरीर बदलती रहती है”
दशकों पहले किसी भी इन्सान की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए केवल ब्राम्हणों को भोजन करवाया जाता था| लेकिन समय के साथ-साथ समाज के साथ जुडाव और लोक-लज्जा के कारण लोग बड़े पैमाने पर म्रत्यु भोज का आयोजन करते हैं| जिसमें दूर-दूर से रिश्तेदारों, परिचितों को बुलाया जाता है|
भारतीय समाज में किसी भी इन्सान के देह त्याग करने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए कई तरह के संस्कार किये जाते हैं| हिन्दू सभ्यता में किये जाने वाले सोलह संस्कारों में सबसे प्रथम संस्कार है “गर्भाधान” और सबसे आखिरी संस्कार है “अंतिम संस्कार” जिसे पुराणों में सबसे अहम् संस्कार माना गया है|
लेकिन जब पुरानों में भी 17 वे संस्कार के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है, जब 17 वा संस्कार बना ही नहीं है तो कलयुग में मृत्यु के बाद यह मृत्युभोज का संस्कार कहाँ से आया गया|
क्या कथा है महाभारत की
महाभारत की एक कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के समय महाभारत के युद्ध को रोकने के लिए श्री कृष्ण दुर्योधन के घर गए और महाभारत के युद्ध को रोकने का आग्रह करने लगे| लेकिन दुर्योधन ने श्री कृष्ण के आग्रह को ठुकराते हुए महाभारत का युद्ध किसी भी अवस्था में लड़ने का फैसला सुना दिया|
श्री कृष्ण को दुर्योधन के इस तरह अपमान करने और भविष्य में महाभारत से होने वाली हानि को न समझने के कारण बहुत कष्ट हुआ और वे दुर्योधन के महल से जाने लगे|
तभी दुर्योधन ने श्री कृष्ण को भोजन करने का आग्रह किया| दुर्योधन के भोजन के आग्रह को सुनकर श्री कृष्ण ने दुर्योधन को कहा की, “सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः’ अर्थात है दुर्योधन जब खिलने वाले का मन प्रसन्न हो और खाने वाले का मन प्रसन्न हो तभी कहीं भी भोजन करना चाहिए
लेकिन जब भोजन करवाने वाले के मन में किसी बात को लेकर पीड़ा हो, किसी हानि को लेकर कष्ट हो या मन दुखी हो ऐसी परिस्थिथि में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए”
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