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LOVE STORY

Hindi Love Story


साथियों नमस्कार! प्यार, मुहोब्बत, इश्क जब इन्सान को इनमें से कोई एक चीज मिल जाती है तो उसे दुनियां में बाकी सारी चीजें छोटी लगने लग जाती है | जी हाँ, Hindi Short Stories के पाठकों के दिलों की धडकनों को बढ़ाने के लिए आप सभी के लिए पेश हे HINDI LOVE STORY

साथियों, हम सभी को अपनी ज़िन्दगी में कभी ना कभी मुहोब्बत ज़रूर होती है | आपको भी हुई होगी और अगर ना हुई हो तो अब हो जाएगी| सभी के दिलों का अरमान होता है, कि जिनसे उन्हें मुहोब्बत है वो भी उनसे उतनी ही मुहोब्बत करें और अगर मुहोब्बत सच्ची हो तो आग दोनों तरफ लगी होती है|

इसलिए लगभग हर HINDI  LOVE STORY में हमें कहीं ना कहीं हमारी कहानी छुपी हुई दिखाई देती है | इसलिए Hindi Short Stories हमारे सभी पाठकों के लिए कुछ खास कहानियां पेश करने जा रहा है………

धन्यवाद्!


दशहरा  | Story in Hindi

दशहरा पर इस बार मैं अपने शहर आया हूँ पूरे 5 साल बाद, मैं यानी वीर सिंह राजपूत! अभी घर से दूर रहता हूँ और मुश्किल से ही घर आ पाता हूँ!

खैर थोड़े देर आराम करने पर दोस्तो की याद सताई तो सबको फ़ोन लगाया पर अफसोस कोई भी इस बार की दशहरा में घर नही आया था!

शाम होते-होते मेरी हिम्मत जवाब दे गई सो थोडा टहलने के लिए में बहार निकला| सोचा थोडा पार्क की सैर कर ली जाए… जब मैं पार्क में घूम रहा था तो मेरे पैर अनायास ही झील की तरफ मुड़ गए|

वहां मेरे पुराने दिनों की सबसे ख़ास जगह आज भी थी! मोड़ पर बनी वो स्पेशल अदरक वाली  चाय की दुकान जिसकी चाय मुझे माँ के हाथ की बनी चाय के बाद बेहद पसंद थी|

मैं बचपन से चाय का दीवाना था इसलिए हर शाम अपने कॉलेज से आने के बाद वहाँ जाकर अपनी स्पेशल अदरक वाली चाय ज़रूर पीता और फिर झील की सीढ़ियों पर पानी में पैर लटकाकर घण्टों बैठा रहता|

खैर बचपन के दिनों को याद करते हुए में आगे बढ़ता-बढ़ता अपनी सबसे खास जगह पर आ पहुंचा था| इस जगह को देखकर मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए|

कॉलेज में एडमिशन के 2 महीने बाद अपने क्लास में एक नई लड़की आयी थी बिल्कुल मेरे पास वाले बेंच में बैठी थी, ये वही लड़की थी जिसके चलते हमारी अटेंडेंस कॉलेज में बढ़ गई थी|

पहले हमें रोज सुनना होता था कि आजकल बच्चे एडमिशन ले लेते और गायब हो जाते है एग्जाम तक!

आज जब अपनी अटेंडेंस के समय वो अपनी उपिस्थिती दर्ज करा रही थी तो उसकी प्यारी आवाज़ (Present Sir) सुनकर अपने क्लास में बैठे सभी लड़के लड़कियों का चेहरा उसकी तरफ़ मुड़ गया था|

उसकी आवाज़ सुनकर टीचर बोले “अच्छा तो वो आप है जिसका ये आज पहला क्लास है ??” (Yess Sir)  मैं उसकी आवाज़ सुनकर मन्त्रमुग्ध हो उठा था!

मुझे उससे बात करने का मन था| मुझे उसे अपना दोस्त बनाना था, सबसे अच्छा दोस्त जिसका साथ कभी न छूटे, मुझे उससे बात करनी थी पर समझ नही आ रहा था कि क्या कहूँ और कैसे शुरुआत करूँ!

खैर हिम्मत जुटाकर, अपनी लड़खड़ाती ज़बान से उससे पूछा था, hello क्या नाम है आपका ? और वो मेरी ओर मुड़कर थोड़े सख्त स्वर में बोली थी “नाम जानकर क्या करोगे??”

मैं पहली बार उसे देख रहा था, बड़ी -बड़ी आंखे , मेकअप किया हुआ आईब्रो, गुलाबी सुंदर होंठ और एक प्यारा बडा सा तिल| मैं उसे देखकर खो सा गया था|

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पहली नज़र में ही वो मुझे पसंद आ गई थी! मैं सपनो की दुनिया मे खोकर दिन-रात बस उसे अपना बनाने के सपना देखने लगा था!

मैंने फिर उससे बड़े प्यार से पूछा कि नाम जानकर क्या कर लूंगा? बस एक दोस्तो बन जाएगा| उसका दिल शायद पिघला और वो बोली, “मीरा सिंह राजपूत” नाम है मेरा! वो अपना नाम ऐसे  बताई जैसे राजपूत होने का रौब हो उस पर!

मीरा सिंह राजपूत, मैं नाम सुनकर मुस्कुरा दिया! कुछ कहा नही, वो मेरा मुस्कुराना नहीं समझ पायी! क्लास खत्म होने में अभी 20 मिनट बाकी थे| इतनी देर में, मैं ना जाने अपने मन मे क्या-क्या सपने बून लिया था|

क्लास खत्म हो गयी थी सब लडके लडकिया क्लास से बाहर चले गए थे लेकिन मैं अभी भी अपनी दुनिया मे मस्त खोया हुआ था! आज घर नहीं जाना है क्या तुम्हें?? उसने पूछा तो मेरा ध्यान टूटा|

हां चलते है ना – मेने कहा!  फिर उसने पूछा कि तुमने अपना नाम नही बताया?
आपने पूछा कहाँ? मेने कहा

इस बार वो हँस पड़ी थी! फिर उसने पूछा- “तो आपका नाम क्या है ज़नाब??” मैं- वीर सिंह राजपूत, मेने भी कुछ इस कदर कहा जैसे मुझे भी अपने राजपूत होने पर गर्व हो|

मेरे इस अंदाज़ पर इस बार उसने भी मुस्कुरा
दिया था|इतनी देर में हम गेट तक आ चुके थे, अब हमारी पहली मुलाकात का बिछड़ने का समय था|

मेरा मन डूब रहा था तभी गेट पर उसे लेने एक कार आयी और वो चली गयी! उस शाम जब मैं अपनी पसंदीदा चाय पी रहा था तो वो मुझे पास वाले कॉफी बार मे नज़र आई|

मैं उसे देखना चाहता था! उससे बात करना चाहता था! पर वो मुझे नही देखी और मेरी आंखों से ओझल हो गयी|

जब मैं झील की सीढ़ियों पर पैर पानी मे लटका कर बैठा था तो  मुझे अपने पास बहुत खाली जगह महसूस हो रही थी मेरा मन कह रहा था – काश! वो मेरी तरह पैर पानी मे लटका कर मेरे साथ बैठे!

कॉलेज में हम दोनों धीरे धीरे दोस्त बन रहे थे पर वो मुझसे  ज्यादा बात नहीं करती  थी और मैं उससे बात करने का बस बहाना ढूंढता फिरता रहता था!

एक दिन उसने मुझे चाय की दुकान पर देखा वो कॉफी बार मे कॉफी पीने आई थी| उसे काफ़ी बहुत पसंद थी, अपनी जान से भी ज्यादा! तुम मेरा पीछा करते हो क्या ??? उसने पुछा

नहीं तो! मैं यहाँ  रोज चाय पीने आता हूँ – मेने मुस्कुराते हुए कहा|

तुम पिओगी मेरी स्पेशल अदरक वाली चाय ?? मेने पूछा| वो मुस्कुराई! फिर हम दोनों चाय पीकर झील घूमने लगे!और क्या क्या पसंद है तुम्हे? मैं- मुझे यहाँ बैठना बेहद पसन्द है मैं अपनी जगह उसे दिखाते हुए बोला!

तुम बैठोगी यहाँ मेरे साथ?? नहीं अभी नहीं अब मैं जा रही हु तुम बैठो अपनी Favourate Place पर! कहकर वो चली गई|

लेकिन उस दिन के बाद वो मुझे चाय पर रोज मिलने लगी थी! हम साथ स्पेशल अदरक वाली चाय पीते, थोड़ी देर घुमते और फिर वो चली जाती!

अब मुझे पानी में पैर लटका कर बैठने में पहले जैसा सुकून नहीं मिलता था| एक अकेलापन सा महसूस होता था! शायद मैं उसका ज़िंदगी भर का साथ चाहने लगा था! शायद मुझे प्यार हो गया था उससे|

हमारा 11th खत्म हो गया था वो क्लास की Topper थी और मैं 2nd
हमारी जोड़ी जमने लगी थी हम एक दूसरे से प्यार करने लगे थे|

स्कूल की छुट्टियाँ हो गई थी| और हमारा मिलना भी बंद हो गया था| में बस अब बेसब्री से स्कूल के फिर से शुरू होने का इंतज़ार कर रहा था|

कुछ ही दिनों बाद स्कूल फिर से शुरू हो गए थे| लेकिन मेरा इंतज़ार अब भी ख़तम नहीं हुआ था| 12th में वो अचानक कही चली गयी! पता नहीं कहाँ ?? फिर हम  कभी नहीं मिल पाए|

मैं उसके बिना टूट गया था, चिड़चिड़ा हो गया था| उसे भूलना मुश्किल था मेरे लिए!

मेरा मन अब किसी चीज़ में नही लगता था न
पढ़ाई में न चाय पीने में और ना ही अब झील घूमने में! उसकी याद सताती थी मुझे वहाँ! मैंने  अब झील जाना छोड़ दिया था औऱ चाय पीना भी|

आप पढ़ रहें हैं Love Story in Hindi 

12th बोर्ड में मेरे कम मार्क्स आये थे| फिर मुझे दूसरे शहर जाना पड़ा| घर मैं अब कम ही आ पाता था

आज जब मैं चाय के दुकान से गुजरा तो मेरे सामने वो खड़ी थी| “मीरा सिंह राजपूत” वही बड़ी बड़ी आंखे, वही आईब्रो, वही गुलाबी होंठ और प्यारा सा तिल|

उसे देख कर मैं असहज हो गया! मेरे पैर लड़खड़ा रहे थे, मुझे कुछ समझ नही आ रहा था| तभी वो सामने से आकर बोली – मुझे स्पेशल अदरक वाली चाय नही पिलाओगे??

मैं किसी तरह काँपते हाथों से उसके लिए चाय लाया| चाय पीने बाद हम उसकी ज़िद पर झील घूम रहे थे| मैं उससे पूछ नहीं पाया कि तुम कहाँ चले गए थे ?

वो चलो न तुम्हारी Favorite Place पर बैठते है| पानी में पैर लटका कर! मैं अवाक था उसे सब याद था| मेरे मन मे कई सवाल थे| आखिर क्यों उसने मुझसे इतने दिन मिलने की कोशीश  नहीं की ??

हम दोनों आज साथ बैठे थे| झील की सीढ़ियों पर पानी मे पैर लटकाकर हाथो में हाथ डाल कर !!!

आज मुझे यह समझ आ गया था की… मुहोब्बत का कोई वक्त, कोई  ठिकाना नहीं होत| ज़िन्दगी के हंसी सफ़र में ना जाने कब, कहाँ और कैसे कोई हमसफ़र मिल जाए..जिसे मिलने पर ज़िन्दगी और वक़्त के बस वहीँ रुक जाने का दिल करे, लगे मानो बस इसी की तो हमें तलाश थी

“रवि शंकर सिंह”

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पवित्र रिश्ता | New Love Story

ट्रेन चलने को ही थी, कि अचानक कोई जाना पहचाना सा चेहरा जनरल बोगी में आ गया। मैं अकेली सफर पर थी। वहाँ सभी अजनबी चेहरे ही थे। स्लीपर का टिकिट नही मिला तो जनरल डिब्बे में ही बैठना पड़ा। मग़र यहां, ऐसे हालात में उस शख्स से मिलना, जिंदगी के लिए एक संजीवनी के समान था।

ज़िंदगी भी कमबख़्त, कभी कभी अजीब से मोड़ पर ले आती है। ऐसे हालातों से सामना करवा देती है जिसकी कल्पना तो क्या कभी ख़्याल भी नही कर सकते ।

वो आया और मेरे पास ही खाली जगह पर बैठ गया। ना मेरी तरफ देखा, ना पहचानने की कोशिश की। कुछ इंच की दूरी बना कर चुपचाप पास आकर बैठ गया। बाहर सावन की रिमझिम लगी थी। इस कारण वो कुछ भीग गया था। मैने कनखियों से नजर बचा कर उसे देखा। उम्र के इस मोड़ पर भी कमबख्त वैसा का वैसा ही था। हां कुछ भारी हो गया था। मगर इतना ज्यादा भी नही।

फिर उसने जेब से चश्मा निकाला और मोबाइल में लग गया।

चश्मा देख कर मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। उम्र का यही एक निशान उस पर नजर आया था कि आंखों पर चश्मा चढ़ गया था। चेहरे पर और सर पे मैने सफेद बाल खोजने की कोशिश की मग़र मुझे नही दिखे।

मैंने जल्दी से सर पर साड़ी का पल्लू डाल लिया। बालो को डाई किए काफी दिन हो गए थे मुझे। ज्यादा तो नही थे सफेद बाल मेरे सर पे। मगर इतने जरूर थे कि ग़ौर से देखो तो नजर आ जाएं।

मैं उठकर बाथरूम गई। हैंडबैग से फेसवाश निकाला चेहरे को ढंग से धोया फिर शीशे में चेहरे को गौर से देखा। पसंद तो नही आया मग़र, अजीब सा मुँह बना कर मैने शीशा वापस बैग में डाला और वापस अपनी जगह पर आ गई।

मग़र वो साहब तो खिड़की की तरफ से मेरा बैग सरकाकर खुद खिड़की के पास बैठ गए थे।

मुझे पूरी तरह देखा भी नही बस बिना देखे ही कहा, ” सॉरी, भाग कर चढ़ा तो पसीना आ गया था । थोड़ा सुख जाए फिर अपनी जगह बैठ जाऊंगा।” फिर वह अपने मोबाइल में लग गया। मेरी इच्छा जानने की कोशिश भी नही की। उसकी यही बात हमेशा मुझे बुरी लगती थी। फिर भी ना जाने उसमे ऐसा क्या था कि आज तक मैंने उसे नही भुलाया। एक वो था कि दस सालों में ही भूल गया। मैंने सोचा शायद अभी तक गौर नही किया। पहचान लेगा। थोड़ी मोटी हो गई हूँ। शायद इसलिए नही पहचाना। मैं उदास हो गई।

जिस शख्स को जीवन मे कभी भुला ही नही पाई उसको मेरा चेहरा ही याद नही?

माना कि ये औरतों और लड़कियों को ताड़ने की इसकी आदत नही मग़र पहचाने भी नही?

शादीशुदा है। मैं भी शादीशुदा हुँ जानती थी इसके साथ रहना मुश्किल है मग़र इसका मतलब यह तो नही कि अपने खयालो को अपने सपनो को जीना छोड़ दूं।

एक तमन्ना थी कि कुछ पल खुल के उसके साथ गुजारूं। माहौल दोस्ताना ही हो मग़र हो तो सही?

आज वही शख्स पास बैठा था जिसे स्कूल टाइम से मैने दिल मे बसा रखा था। सोशल मीडिया पर उसके सारे एकाउंट चोरी छुपे देखा करती थी। उसकी हर कविता, हर शायरी में ख़ुद को खोजा करती थी। पर, हाय ! वह तो आज पहचान ही नही रहा ? ?

माना कि हम लोगों में कभी प्यार की पींगे नही चली। ना कभी इज़हार हुआ। हां वो हमेशा मेरी केयर करता था, और मैं उसकी केयर करती थी। कॉलेज छूटा तो मेरी शादी हो गई और वो फ़ौज में चला गया। फिर उसकी शादी हुई। जब भी गांव गई उसकी सारी खबर ले आती थी।

बस ऐसे ही जिंदगी गुजर गई।

आधे घण्टे से ऊपर हो गया। वो आराम से खिड़की के पास बैठा मोबाइल में लगा था। देखना तो दूर चेहरा भी ऊपर नही किया?

मैं कभी मोबाइल में देखती कभी उसकी तरफ। सोसल मीडिया पर उसके एकाउंट खोल कर देखे। तस्वीर मिलाई। वही था। पक्का वही। कोई शक़ नही था। वैसे भी हम महिलाएं पहचानने में कभी भी धोखा नही खा सकती। 20 साल बाद भी सिर्फ आंखों से पहचान ले☺️

फ़िर और कुछ वक्त गुजरा। माहौल वैसा का वैसा था। मैं बस पहलू बदलती रही।

फिर अचानक टीटीई आ गया। सबसे टिकिट पूछ रहा था।

मैंने अपना टिकिट दिखा दिया। उससे पूछा तो उसने कहा नही है।

टीटी बोला, “फ़ाईन लगेगा”

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वह बोला, “लगा दो”

टीटी, ” कहाँ का टिकिट बनाऊं?”

उसने जल्दी से जवाब नही दिया। मेरी तरफ देखने लगा। मैं कुछ समझी नही।

उसने मेरे हाथ मे थमी टिकिट को गौर से देखा फिर टीटी से बोला, ” कानपुर।”

टीटी ने कानपुर की टिकिट बना कर दी। और पैसे लेकर चला गया।

वह फिर से मोबाइल में तल्लीन हो गया।

आखिर मुझसे रहा नही गया। मैंने पूछ ही लिया,”कानपुर में कहाँ रहते हो?”

वह मोबाइल में नजरें गढ़ाए हुए ही बोला, ” कहीँ नही”

वह चुप हो गया तो मैं फिर बोली, “किसी काम से जा रहे हो”

वह बोला, “हाँ”

अब मै चुप हो गई। वह अजनबी की तरह बात कर रहा था और अजनबी से कैसे पूछ लूँ किस काम से जा रहे हो।

कुछ देर चुप रहने के बाद फिर मैंने पूछ ही लिया, “वहां शायद आप नौकरी करते हो?”

उसने कहा,”नही”

मैंने फिर हिम्मत कर के पूछा “तो किसी से मिलने जा रहे हो?”

वही संक्षिप्त उत्तर ,”नही”

आखरी जवाब सुनकर मेरी हिम्मत नही हुई कि और भी कुछ पूछूँ। अजीब आदमी था । बिना काम सफर कर रहा था।

मैं मुँह फेर कर अपने मोबाइल में लग गई।

कुछ देर बाद खुद ही बोला, ” ये भी पूछ लो क्यों जा रहा हूँ कानपुर?”

मेरे मुंह से जल्दी में निकला,” बताओ, क्यों जा रहे हो?”

फिर अपने ही उतावलेपन पर मुझे शर्म सी आ गई।

उसने थोड़ा सा मुस्कराते हुवे कहा, ” एक पुरानी दोस्त मिल गई। जो आज अकेले सफर पर जा रही थी। फौजी आदमी हूँ। सुरक्षा करना मेरा कर्तव्य है । अकेले कैसे जाने देता। इसलिए उसे कानपुर तक छोड़ने जा रहा हूँ। ” इतना सुनकर मेरा दिल जोर से धड़का। नॉर्मल नही रह सकी मैं।

मग़र मन के भावों को दबाने का असफल प्रयत्न करते हुए मैने हिम्मत कर के फिर पूछा, ” कहाँ है वो दोस्त?”

कमबख़्त फिर मुस्कराता हुआ बोला,” यहीं मेरे पास बैठी है ना”

इतना सुनकर मेरे सब कुछ समझ मे आ गया। कि क्यों उसने टिकिट नही लिया। क्योंकि उसे तो पता ही नही था मैं कहाँ जा रही हूं। सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए वह दिल्ली से कानपुर का सफर कर रहा था। जान कर इतनी खुशी मिली कि आंखों में आंसू आ गए।

दिल के भीतर एक गोला सा बना और फट गया। परिणाम में आंखे तो भीगनी ही थी।

बोला, “रो क्यों रही हो?”

मै बस इतना ही कह पाई,” तुम मर्द हो ना, नहीं समझ सकते”

वह बोला, ” क्योंकि थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ इसलिए एक कवि और लेखक भी हूँ। सब समझ सकता हूँ।”

मैंने खुद को संभालते हुए कहा “शुक्रिया, मुझे पहचानने के लिए और मेरे लिए इतना टाइम निकालने के लिए”

वह बोला, “प्लेटफार्म पर अकेली घूम रही थी। कोई साथ नही दिखा तो आना पड़ा। कल ही रक्षा बंधन था। इसलिए बहुत भीड़ है। तुमको यूँ अकेले सफर नही करना चाहिए।”

“क्या करती, उनको छुट्टी नही मिल रही थी। और भाई यहां दिल्ली में आकर बस गए। राखी बांधने तो आना ही था।” मैंने मजबूरी बताई।

“ऐसे भाइयों को राखी बांधने आई हो जिनको ये भी फिक्र नही कि बहिन इतना लंबा सफर अकेले कैसे करेगी?”

“भाई शादी के बाद भाई रहे ही नही। भाभियों के हो गए। मम्मी पापा रहे नही।”

कह कर मैं उदास हो गई।

वह फिर बोला, “तो पति को तो समझना चाहिए।”

“उनकी बहुत बिजी लाइफ है मैं ज्यादा डिस्टर्ब नही करती। और आजकल इतना खतरा नही रहा। कर लेती हुँ मैं अकेले सफर। तुम अपनी सुनाओ कैसे हो?”

“अच्छा हूँ, कट रही है जिंदगी”

“मेरी याद आती थी क्या?” मैंने हिम्मत कर के पूछा।

वो चुप हो गया।

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कुछ नही बोला तो मैं फिर बोली, “सॉरी, यूँ ही पूछ लिया। अब तो परिपक्व हो गए हैं। कर सकते है ऐसी बात।”

उसने शर्ट की बाजू की बटन खोल कर हाथ मे पहना वो तांबे का कड़ा दिखाया जो मैंने ही फ्रेंडशिप डे पर उसे दिया था। बोला, ” याद तो नही आती पर कमबख्त ये तेरी याद दिला देता था।”

कड़ा देख कर दिल को बहुत सुकून मिला। मैं बोली “कभी सम्पर्क क्यों नही किया?”

वह बोला,” डिस्टर्ब नही करना चाहता था। तुम्हारी अपनी जिंदगी है और मेरी अपनी जिंदगी है।”

मैंने डरते डरते पूछा,” तुम्हे छू लू ?”

वह बोला, ” पाप नही लगेगा?”

मै बोली,” नही, छूने से नही लगता।”

और फिर मैं कानपुर तक उसका हाथ पकड़ कर बैठी रही।।

बहुत सी बातें हुईं।

जिंदगी का एक ऐसा यादगार दिन था जिसे आखरी सांस तक नही बुला पाऊंगी।

वह मुझे सुरक्षित घर छोड़ कर गया। रुका नही। बाहर से ही चला गया।

जम्मू थी उसकी ड्यूटी । चला गया।

उसके बाद उससे कभी बात नही हुई । क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर नही लिए।

हांलांकि हमारे बीच कभी भी नापाक़ कुछ भी नही हुआ। एक पवित्र सा रिश्ता था। मगर रिश्तो की गरिमा बनाए रखना जरूरी था।

फिर ठीक एक महीने बाद मैंने अखबार में पढ़ा कि वो देश के लिए शहीद हो गया। क्या गुजरी होगी मुझ पर वर्णन नही कर सकती। उसके परिवार पर क्या गुजरी होगी। पता नही

Love Story in Hindi

लोक लाज के डर से मैं उसके अंतिम दर्शन भी नही कर सकी।

आज उससे मीले एक साल हो गया है आज भी रखबन्धन का दूसरा दिन है आज भी सफर कर रही हूँ। दिल्ली से कानपुर जा रही हूं। जानबूझकर जर्नल डिब्बे का टिकिट लिया है मैंने।

अकेली हूँ। न जाने दिल क्यों आस पाले बैठा है कि आज फिर आएगा और पसीना सुखाने के लिए उसी खिड़की के पास बैठेगा।

एक सफर वो था जिसमे कोई #हमसफ़र था।

एक सफर आज है जिसमे उसकी यादें हमसफ़र है। बाकी जिंदगी का सफर जारी है देखते है कौन मिलता है कौन साथ छोड़ता है…!!!

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एक नई ज़िन्दगी

दोस्तों, ज़िन्दगी एक ऐसा हसीं सफ़र है जहाँ हम रोज़ एक नए पल को जीते हैं| इन पलों में कई पल हमें ख़ुशी दे जाते हैं और कई पल दुःख के सागर से भरे होते हैं| लेकिन सुख और दुःख में हमारे अपनों का साथ निभाना ही ज़िन्दगी है| कुछ इन्हीं खयालों से औत-प्रोत है हमारी आज की कहानी “एक नई ज़िन्दगी | True Love Stories in Real Life in Hindi ” जिसे लिखा है हमारी मण्डली के सदस्य “गौरांग सक्सेना” ने!!


कोरा कागज़ | Real Love Story

बात लगभग 40 साल पहले की है जब विवाह को दो दिलों का मेल ना समझ कर बस एक रस्म की तरह निभाया जाता था| लेकिन जब दो अजनबी अचानक अपनि ज़िन्दगी किसी के साथ बाँटने लग जाए, जब किसी के लिए दिल में सम्मान के भाव आने लग जाए तो प्यार हो ही जाता है| खैर चलिए इतना तो आप जानते ही है और यह भी जान गए होंगे की हम आपको आज यह प्यार मुहोब्बत वाली बातें क्यों बता रहें हैं, जी हाँ आज हम आपके लिए प्यार भरी एक और कहानी लेकर आए हैं, कोरा कागज़


मुस्कुराहट | True Love Story

जी हाँ, मुहोब्बत का कोई वक्त और ठिकाना नहीं होता…ज़िन्दगी के हंसी सफ़र में ना जाने कब, कहाँ और कैसे कोई हमसफ़र मिल जाए..जिसे मिलने पर ज़िन्दगी और वक़्त के बस वहीँ रुक जाने का दिल करे, लगे मानो बस इसी की तो हमें तलाश थी! कुछ ऐसे ही किस्से कहानियों से रूबरू कराती हमारी आज की यह कहानी “मुस्कराहट”


बरसात | Barsaat Hindi Love Story


प्रेम ही दुनियां में एक ऐसी चीज है जो हमें जीवन जीने की एक नई दिशा दिखाती है| इसी कड़ी में प्रेम की परिभाशा को भली भांति समझने के लिए हम एक और खास कहानी आपसे साझा कर रहें हैं आशा है आपको हमारी यह कहानी बहुत पसंद आएगी|

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