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Kahani in Hindi

                                 भाग्य | Kahani in Hindi


कहते हैं की इन्सान के भाग्य में जो लिखा होता है उसे वही नसीब होता है| हमारी आज की कहानी “भाग्य | Kahani in Hindi” भी इसी पर आधारित है|


                                          भाग्य | Kahani in Hindi

एक गाँव में एक काफी धनवान सेठ रहते थे| नाम था जिका संपत राव| धन-सम्पदा, एशो-आराम की उनको कोई कमी न थी| परन्तु पुत्र सुख उनके भाग में न था| बड़े जतन, पूजा-पाठ करने के बाद सेठानी को पुत्री हुई| सेठ जी ने अपनी पुत्री को ही बड़े लाड-प्यार से एक पुत्र की तरह पाल-पोस कर बड़ा किया| सेठानी हमेशा सेठ जी को एक पुत्र गोद लेने का कहती लेकिन सेठ जी पुत्र सुख उनके भाग्य में न होने की बात कहकर सेठानी जी की बात टाल जाते|

खेर, हर बेटी की तरह सेठ जी की बेटी भी शादी योग्य हुई और तह समय पर शुभ मुहूर्त देखकर सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी  धनवान व्यक्ति से कर दी| परन्तु बेटी के भाग्य में धन सुख न था| शादी के कुछ समय बाद ही बेटी का पति जुआरी, शराबी निकल गया और शराब और जुए में उसकी सारी धन-सम्पदा समाप्त हो गई|

बेटी को  इस तरह दुखी देखकर सेठानी जी भी दुखी होती| एक दिन सेठानी जी ने सेठ जी के पास जाकर अपनी बेटी के दुःख पर चिंता जताते हुए कहा, “आप दुनिया की मदद करते हो लेकिन यहाँ हमारी खुद की बेटी दुखी है| आप उसकी मदद क्यों नहीं करते ?

सेठ जी भी बेटी के दुःख से दुखी थे लेकिन वे जानते थे की जिस तरह उनके भाग्य में पुत्र प्राप्ति नहीं थी ठीक उसी तरह बेटी के भाग्य में भी अभी सुख नहीं है| उन्होंने सेठानी जी को समझाते हुए कहा, “भाग्यवान! अभी उसके भाग्य में सुख नहीं लिखा है, जब उसका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब मदद को तैयार हो जाएँगे और खोई हुई धन-सम्पदा फिर से प्राप्त हो जाएगी| लेकिन सेठानी जी को तो अपनी बेटी के दुःख की चिंता खाए जा रही थी|

भाग्य | Kahani in Hindi

एक दिन सेठ जी किसी काम से दुसरे शहर गए हुए थे| तभी उनके दामाद का सेठ जी के घर आना हुआ| सेठानी जी ने बड़ी आव-भगत से अपने दामाद का आदर किया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करवाया| तभी उनके मन में बेटी की मदद करने का विचार मन में आया और उन्होंने सोचा क्यों न मोतीचूर के लड्डुओं के बिच में सोने की अशर्फियाँ रखकर बेटी के घर भिजवा दी जाए|

बस सेठानी जी के सोचने भर की देर थी| उन्होंने जल्दी से मोतीचूर के लड्डू बनाए और एक-एक सोने की अशर्फी लड्डुओं के बिच रखकर दामाद को टिका लगाकर देशी घी के लड्डू जिनमे अशर्फियाँ थी देकर विदा किया| लड्डू लेकर दामाद जी घर की और निकले| रास्ते में उन्हें एक मिठाइयों की दुकान दिखाई दि| दामाद जी ने सोचा इतना वजन कौन घर लेकर जाए, क्यों न लड्डू मिठाई की दुकान पर बेच दिए जाए|

बस फिर क्या था, दामाद जी के सोचने भर की देर थी| उन्होंने लड्डुओं से भरी ठेली मिठाई की दुकान पर बेचकर नगद पैसे ले लिए और खुश होकर घर की और निकल पड़े|

उधर सेठ जी बाहर से आए तो उन्होंने सोचा क्यों न घर के लिए देसी घी के मोतीचूर के लड्डू ले चलू| आगे जाकर सेठ जी भी उसी दुकान पर गए जहाँ उनके दामाद ने मोतीचूर के लड्डू बेचें थे| सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू मांगे, दुकानदार ने लड्डुओं की वही थैली सेठ जी को दे दी जो उनके दामाद कुछ ही देर पहले दुकानदार को बेचकर गए थे|

लड्डू लेकर सेठ जी घर आए और लड्डुओं की थैली सेठानी जी को दी| लड्डुओं की वही थैली देख सेठानी जी ने लड्डुओं को फोड़कर देख तो उनमे से अशर्फियाँ निकली| अशर्फियाँ देख सेठानी जी ने माथा पकड़ लिया और बेटी की मदद करने के लिए दामाद जी को लड्डुओं में अशर्फियाँ छुपाकर देने की बात सेठ जी को बताई|

सेठानी जी की बात सुनकर सेठ जी ने कहा, “भाग्यवान! में न कहता था की अभी धन सुख उनके भाग्य में नहीं है इसलिए तुम्हारी दी गई अशर्फियाँ फिर से घूम-फिर कर तुम्हारे पास ही आ गई|”

तो दोस्त इसलिए कहते हैं, “भाग्य से बड़ा कोई नहीं, जो इन्सान के भाग्य में लिखा होता है उसे वही नसीब होता है”

भाग्य | Kahani in Hindi


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