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Hindu Mythology Stories

पंच रत्न | Hindu Mythology Stories

हिन्दू ध्रर्म (hindutva) विश्व का सबसे प्राचीन धर्म है| सदियों से हिन्दू धर्म में कई कहानिया, किस्से चलें आएं है जो हमें कहीं ना कहीं जीवन के किसी न किसी पड़ाव में कोई न कोई शिक्षा जरुर दे जाते हैं| उन्हीं कुछ किस्से कहानियों में से एक कहानी पंच रत्न | Hindu Mythology Stories हम आपके बिच लेकर आएं हैं|

                           पंच रत्न | Hindu Mythology Stories


महर्षि कपिल प्रतिदिन पैदल अपने आश्रम से गंगा स्नान के लिए जाया करते थे| मार्ग में एक छोटा सा गाँव पड़ता था| जहाँ पर कई किसान परिवार रहा करते थे| जिस मार्ग से महर्षि गंगा स्नान के लिए जाया करते थे,  उसी मार्ग में एक विधवा ब्राम्हणी की कुटीया भी पड़ती थी| महर्षि जब भी उस मार्ग से गुजरते, ब्राम्हणी या तो उन्हें चरखा कातते मिलती या फिर धान कुटते| एक दिन विचलित होकर महर्षि ने ब्राम्हणी से इसका कारण पूछ ही लिया| पूछने पर पता चला की ब्राम्हणी के घर में उसके पति के अलावा आजीविका चलने वाला कोई न था| अब पति की म्रत्यु के बाद पुरे परिवार के भरण पोषण की ज़िम्मेदारी उसी पर आ गई थी|

कपिल मुनि को ब्राम्हणी की इस अवस्था पर दया आ गई और उन्होंने ब्राम्हणी के पास जाकर कहा, “भद्रे ! में पास ही के आश्रम का कुलपति कपिल हूँ| मेरे कई शिष्य राज-परिवारों से हैं| अगर तुम चाहो तो में तुम्हारी आजीविका की स्थाई व्यवस्था करवा सकता हूँ, मुझसे तुम्हारी यह असहाय अवस्था देखी नहीं जाती|

ब्राम्हणी ने हाथ जोड़कर महर्षि का आभार व्यक्त किया और कहा, “मुनिवर, आपकी इस दयालुता के लिए में आपकी आभारी हूँ, लेकिन आपने मुझे पहचानने में थोड़ी भूल की है| पंच रत्न | Hindu Mythology Stories
ना तो में असहाय हूँ और ना ही निर्धन| आपके शायद देखा नहीं, मेरे पास पांच ऐसे रत्न हैं जिनसे अगर में चहुँ तो खुद राजा जैसा जीवन यापन कर सकती हूँ| लेकिन मैंने अभी तक  उनकी आवश्यकता अनुभव नहीं किया इसलिए वह पांच रत्न मेरे पास सुरक्षिक रखे हैं| 

कपिल मुनि विधवा ब्राम्हणी की बात सुनकर आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने कहा, “भद्रे ! अगर आप अनुचित न समझे तो आपके वे पांच बहुमूल्य रत्न मुझे भी दिखाएँ| देखू तो आपके पास कैसे बहुमूल्य रत्न है ?

ब्राम्हणी ने आसन बीचा दिया और कहा, “मुनिवर आप थोड़ी देर बैठें, में अभी आपको मेरे रत्न दिखाती हूँ| इतना कहकर ब्राम्हणी फिर से चरखा कातने लगी| थोड़ी देर में ब्राम्हणी के पांच पुत्र विद्यालय से लौटकर आए| उन्होंने आकर महर्षि और माँ के पैर छुए और कहा . “माँ ! हमने आज भी किसी से झूंठ नहीं बोला, किसी को कटु वचन नहीं कहा, गुरुदेव ने जो सिखाया और बताया उसे परिश्रम पूर्वक पूरा किया है|

महर्षि कपिल को और कुछ कहने की आवश्यकता नहीं पड़ी| उन्होंने ब्राम्हणी को प्रणाम कर कहा, “भद्रे ! वाकई में तुम्हारे पास अति बहुमूल्य रत्न है, ऐसे अनुशाषित बच्चे जिस घर में हो, जिस देश में हो उसे चिंता करने की आवश्यकता ही नहीं है|

पंच रत्न | Hindu Mythology Stories


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