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Dhadak-Love Poem in Hindi

Dhadak Love Poem in Hindi | धड़क


साथियों नमस्कार, आज के हमारे इस Article में हम आपके लिए लेकर आएं हैं “Dhadak Love Poem in Hindi | धड़क” जिसे पढ़कर आप भी मुहोब्बत केसमंदर में गोते लगाने लग जाएँगे! अगर आपको भी किसी से मुहोब्बत है तो उनके साथ यह जरुर शेयर करें….


Dhadak Love Poem in Hindi | धड़क

थोडा मुश्किल है हमारा सुधर जाना…
हर शाम की तरह हम ढलते नहीं!

पढ़ सके कोई हमारे दिल की महरूम धड़कने…
इस कदर भी हम कभी मचलते नहीं!

है प्यार हमें भी किसी से बेइंतहा, बेधड़क…
नशे के आलम में भी हम कभी बहकते नहीं!

ना खौफ है हमें, ना शिकवा है किसी का…
इस दिल्लगी के सिवा हम किसी से डरते नहीं…

आरज़ू है हमारी, कोई करे मोहब्बत हमसे भी…
पर उस कदर भी हम किसी पे मरते नहीं!

Dhadak-Love Poem in Hindi

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“मानसून और तुम”

वो मानसून की ही तो बारिश थी

जब पहली दफा मिली थी तुम ।

यही कोई शाम का वक्त था और

आसमां के गुलाबी मेघोँ की पृष्ठभूमि में

तुम्हारे सौंदर्य को देखा था मैंनें ।

हरी हरी घास और झिंगुरों के आवाज़ के शोर के बीच

तुमने अपनी हल्की सी आवाज़ में कहा था ।

मानसून से मैं बेहद प्यार करती हूँ ।

और आप ? मैंनें भी स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया था ।

हमारी बीच के सांकेतिक स्वर मानसून के तेज बारिश की आवाज़ पर भारी पड़ रहे थे ।

बारिश खत्म होने को था और तुम आसमां में
शून्य को निहार रही थी ।

मैं शून्य को साधने की कोशिश में था ।

©किशोर झा

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“इजाजत”

क्या इजाजत है ?
तुझसे बेपनाह मुहोब्बत करने की
तुम्हें बहोत ज्यादा याद करने की
या तुम्हें हकीकत बनाने की

क्या इजाजत है ?
तुम्हारे प्यार में मर मिटने की
धडकनों को थोडा तुम्हारे लिए तेज़ करने की
तुम्हारा ऐसे ही और बहोत साल इंतज़ार करने की

क्या इजाजत है ?
तुम्हें कभी भी न भुलाने की
यादों में तुम्हें अमर बनाने की
ऐसे ही हसीं लफ्ज़ तुम्हारी याद में बडबडाने की

क्या इजाजत है ?
दुनियां में तुम्हारे लिए और लड़ जाने की
सब कुछ रोककर सिर्फ तुम्हें देखने की
तुम्हें अपना सच बनाने की

क्या इजाजत है ?
तुम्हारे और करीब आने की
उन अहसासों को फिर से वैसे ही जीने की
उन पलों के जाम डो घूंट और पिने की

क्या इजाजत है ?
तुम्हारी करारी नज़र से शहीद होने की
तुम्हारे होने से थोडा और खुश होने की
तुमसे और बेशुमार इश्क करते ही रहने की ?

© आशय

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” एहसासों वाली चाय”

मीठे एहसासों से घुली चाय सी हो तुम,
किसी अनजान शहर में भी अपनी सी लगती हो,

स्वाद की बुलंदियों सा है जादू तुम्हारा,
बहती हवाओं में भी मूसलाधार बारिश सी लगती हो,

पत्तों से भरी शाखाओं सा रूप है तुम्हारा,
रेगिस्तान में पानी की सुनहरी बूंद सी चमकतीं हो,

अदरक सी तीख़ापन लिए आवाज़ है तुम्हारी,
जैसे गले से निकलकर सीधे दिल में उतरती हो,

मीठे एहसासों से घुली चाय सी हो तुम,
किसी अनजान शहर में भी अपनी सी लगती हो….!!

©मुसाफ़िर

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