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Child Story in Hindi

Child Story in Hindi | ये बच्चे कब समझदार होंगे

कहते हैं की बच्चे बन के सच्चे होते हैं| बच्चों के मन में अगर एक बार कोई बात बैठ जाती है तो वह उसे ही सच मान बैठते हैं| आज की हमारी कहानी “Child Story in Hindi | ये बच्चे कब समझदार होंगे” इसी पर आधारित है| एक परिवार और परिवार की खीचतान के बिच परिवार के बच्चे क्या सीखते हैं, आइये देखते हैं….


           Child Story in Hindi | ये बच्चे कब समझदार होंगे

रघुवर प्रसाद जी अब सेवानिवृत्त हो चुके थे| वो अध्यापक थे| उनकी पहचान एक कर्मठ अध्यापक के रूप में थी| अपने कितने ही छात्रों से भावनात्मक रिश्ता था, रघुवर जी का| सेवा निवृत्ति के उपरांत भी कितने ही ऐसे छात्र थे जो सफल थे और यदि कहीं मिल जाते थे तो रघुवर जी के पैरो में पड़ जाते थे|

इस सम्मान के आगे अपनी अच्छी खासी पेंशन भी रघुवर जी को छोटी लगती थी| वो अक्सर कहा करते थे “हमने शिक्षा को संस्कार के रूप में विद्यार्थियों में रोपा है, अब तो शिक्षा भी सर्विस सेक्टर का हिस्सा है… शिक्षक के लिए छात्र एक ग्राहक है, तो छात्र और उनके माता पिता के लिए शिक्षक एक सार्विस प्रोवाईडर|” फिर वो एक लम्बी साँस खिंच कर बोलते “सही समय में जिंदगी गुजार गए हम….”

रघुवर जी के एक पुत्री और दो पुत्र थे| बड़ा पुत्र इन्द्र इंजिनियर था! वह अपनी पत्नी रेखा, एक पुत्र रोहन और एक पुत्री रोहिणी के साथ चंडीगढ़ में रहता था| जबकि छोटा पुत्र राजेंद्र, रघुवर जी के साथ रहता था| वो एक अच्छी कम्पनी में नौकरी करता था| ठीक ही कमा लेता था| उसके भी एक पुत्र शिखर और एक पुत्री शिखा थी|

रघुवर जी की पत्नी प्रेमलता और पुत्री आभा और छोटे पुत्र का परिवार उनके साथ उनके पैत्रक निवास “मेरठ” में ही में रहते थे| अभी पुत्री का विवाह नहीं हुआ था| बस ये ही एक चिंता रघुवर जी को थी की नौकरी रहते पुत्री का विवाह नहीं हो पाया| प्रेमलता जी भी इस विषय को लेकर थोडा परेशान रहती थी|

इस कारण से ही रघुवर जी ने अपने फंड को किसी को नहीं दिया था| वो सोचते थे की बस आभा का विवाह बिना पुत्रो पर जोर डाले ठीक से करके जो बचेगा वो पुत्रो को दे देंगे|

रघुवर जी जितने मृदुभाषी थे, प्रेमलता जी उतनी ही कड़क स्वाभाव की थी| वो ज्यादा पढ़ी-लिखीं नहीं थी फिर भी किसी भी विषय पर अड़ जाना उनका स्वभाव था| रघुवर जी ने जीवन भर उनकी बात काटने की हिम्मत नहीं जुटाई थी| ये ही स्वभाव प्रेमलता का बहुओ के साथ भी था|

बड़ी बहु आधुनिक परिवार से थी| और प्रेमलता जी का बड़ा पुत्र भी अच्छा कमाता था इसलिए प्रेमलता जी की अपनी बड़ी बहु से ज्यादा बनी  नहीं| पोती-पोतो की याद तो रघुवर जी और प्रेमलता जी को भी आती थी, परन्तु प्रेमलता जी भी झुकने को तैयार नहीं थी| इसलिए बस जैसे-तैसे चल रहा था| हालाँकि छोटी बहु रश्मि भी प्रेमलता जी के स्वभाव से कुंद थी लेकिन अपने पति के दबाव के कारण चुप थी|

प्रेमलता जी अक्सर अपने छोटे बेटे को ताना मारा करती थी “बड़ा वाला मेहनत करके बड़ी पोस्ट पर चला गया, अंधी कमाई है! और एक तू है धक्के खाकर भी बस 10-15 हज़ार पर अटका है| उसकी तो घरवाली भी एम.बी.ए. है वो भी कमा लेती है| तेरी तो घरवाली भी बीए ही है”|

सासु माँ की इन बातों पर रश्मि चिढ जाती और अपने पति राजेंद्र से कहती “हम कम कमाए या ज्यादा किसी से मांगने नहीं जा रहें हैं| जो बडे बहु-बेटे पूछते भी नहीं, बड़ाई उनकी ही होती है||

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पत्नी को समझाते हुए राजेन्द्र रश्मि से कहता “यार अब 60 साल की उम्र में माँ तो अपनी आदत बदल नहीं पाएंगी, इसलिए थोडा हमें ही एडजेस्ट करना पड़ेगा| कहने दे ना|” इस बात पर रश्मि तुनक कर जवाब देती “हमारे भी माँ हैं उनके भी बहूँ हैं| हमारे वहां तो ऐसे नहीं होता”|

राजेंद्र पीछा छुड़ाने के अंदाज़ में कहता “छोड़ ना यार”

रश्मि ने झल्लाते हुए कहा “क्या छोड़ दू| मांग लिए 2 लाख स्कूल की फ़ीस के नाम पर| और कितनी बड़ाई में कहती हैं तुम्हारी माँ भी| इंद्र ने लॉन लिया है मकान और गाडी के नाम पर.. तनख्वाह तो उसमे चली जाती है| कहती हैं की बच्चे महंगे स्कूल में हैं फ़ीस भी ज्यादा जाती है|”

कुछ देर चुप रहने के बाद फिर से रश्मि ने बोलना शुरू किया “जरुरत वरुरत कुछ ना है| बस माल इकठ्ठा करना है| वैसे तो बड़ी बहु यहाँ आती भी नहीं| जब जरुरत होती हैं तो पता नहीं कैसे मुहं पड जाता हैं फोन करने का? बस सारा फंड खींचने पर लगे हैं|”

राजेंद्र ने खीजते हुए कहा “यार तुझे क्या दर्द है उनका पैसा है| और वैसे इतना विश्वास रख हिस्सा किसी का नहीं मरने देगी माँ”

रश्मि ने भी गर्दन झटकते हुए कहा “मुझे जरुरत नहीं है किसी हिस्से की| बस मुझे गुस्सा जब आता है जब वो तुम्हे ये कहती हैं की तुम्हारी कमाई उनके बड़े बेटे से कम हैं| कम है तो है… हम किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते अपनी गुंजाइश के हिसाब से चलते हैं| मैं तो इतने पर भी खर्चीली लगती हूँ|”

राजेंद्र बहार चला गया| इस तरह अक्सर विवाद हो जाता था| राजेंद्र ने भी अब महारत प्राप्त कर ली थी इस विवाद को झेलने में|

रघुवर जी की बड़ी बहु चाहे सास के पास आये या न आये लेकिन इंद्र और वो किसी न किसी रूप में अपनी जरूरते इनसे जरुर पूरी कर लेते थे| इस बात को मेघा भी जानती थी लेकिन चुप रहती थी| हालाँकि उसे भी ये डर जरुर सताता था की इस तरह उसके माता पिता उसकी शादी के लिए भी कुछ बचायेंगे या नहीं|

बहार ही बरामदे में कुर्सियां और सोफे पड़े थे| जहाँ पर रघुवर जी और प्रेमलता जी बैठे थे| और अपने पोते और पोती को खिला रहे थे| आभा अन्दर ही बैठी टी.वी. देख रही थी| राजेंद्र रघुवर जी के पास आकर बैठ गया|

उनमे आपस में कुछ बातें होने लगी| तभी राजेंद्र के फोन पर रेखा का फोन आया| राजेंद्र उठ कर अलग चला गया| राजेंद्र ने काफी समय बात की वापस आने पर बोला “माँ भैया भाभी आ रहें हैं परसों”

रघुवर जी झटके से उठे और बोले “क्या बालक भी साथ आ रहें हैं|”

इंद्र ने सहमति में सर हिलाया|

बच्चे के आने की खबर सुनकर इंद्र, प्रेमलता जी, रघुवर जी, और आभा सभी खुश थे| लगभग तीन साल के बाद आ रहें थे बच्चे|

ये समाचार सुनकर आभा अपनी भाभी रश्मि के पास गयी और बोली “देखा भाभी दो लाख का असर, तीन साल बाद भाभी घर आ रहीं हैं|”

रश्मि लम्बी साँस छोड़ते हुए बोली “हाँ देख रहीं हूँ”| रश्मि और आभा के मध्य रिश्ता मधुर था|

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घर में सभी बहुत खुश थे इस समाचार को पाकर| देखते ही देखते वो दिन भी आ गया जब बच्चे घर आ गए| रोहन अब काफी जवान दिख रहा था| वो अब दसवीं कक्षा में आ गया था| आवाज़ भी थोड़ी भारी हो गयी थी| रोहिणी भी अब छोटी सी नहीं रह गयी थी वो भी अब सातवीं कक्षा में आ गयी थी|

घर में हर्ष का माहोल था| आभा और रश्मि भी चहल-पहल में खुश थे और रेखा से खूब बातें कर रहें थे| रोहन और रोहिणी शिखा और शिखर के साथ खेल रहे थे| शिखा अभी 9 साल की थी और शिखर मात्र 5 साल का था| रोहन और रोहिणी भी बहुत खुश थे शिखर और शिखा को देखकर| दो दिन बित गए थे इंद्रा और रेखा को आये| अब बच्चे भी आपस में काफी घुल मिल गए थे|

बड़े अपने कामो में लगे थे और बच्चे साथ-साथ खेल रहे थे| तभी रोहिणी के रोने की आवाज़ आई| आवाज़ सुन कर रेखा दौड़ी हुई आई तो देखा शिखा भी रो रही है| रोहिणी ने रेखा से रोते हुए कहा “भाई ने मारा बहुत जोर से”

रेखा ने गुस्से में रोहन की तरफ देखा तो रोहन एक दम से सफाई देने वाले अंदाज़ में बोला “मम्मी इसने पहले शिखा को मारा, जब मैंने मारा”

रेखा को ये अजीब लगा की रोहन ने अपनी चचेरी बहन के लिए अपनी सगी बहन को मार दिया| शायद वो अनजान थी की बच्चे इन रिश्तो के गणित को नहीं समझते| रेखा ने अपने भावो को सँभालते हुए रोहन को डांटते हुए कहा “तू ज्यादा बड़ा हो गया है? हमसे कहता”

रोहन ने तुरंत कहा “मेरी बहन कितनी छोटी है? रोहिणी इसे पिटेगी, तो मै इसे पिटूँगा”

इतनी देर में ही प्रेमलता जी आ गयीं और बोली “चल छोड़ भी अब| आ बेटी रोहिणी ये सब गंदे हैं तू मेरे साथ चल घुमा के लाती हूँ|”

इतना सुनते ही सारे बच्चे अपना झगड़ा भूल गए और सभी एक सुर में कहने लगे “अम्मा मै भी चलूँगा घुमने-अम्मा प्लीज अब नहीं लड़ेंगे” सब अपनी अम्मा के साथ घुमने चले गए|

एसे ही चहल पहल में ये दिन भी बित गया| रात को शिखा ने रोना शुरू कर दिया की वो रोहन भाई के पास सोएगी| रोहन, इंद्रा और रेखा के कमरे में ही सो रहा था| शिखा भी वहीँ सोने की जिद कर रही थी| ये देख कर रोहिणी जो दादी के पास सो रही थी वो भी कहने लगी की मुझे भी मम्मी के पास ही सोना है|

इस सब के मध्य रोहन तपाक से बोल पड़ा “चल रोहिणी तू अम्मा के पास सो.. हमारे पास शिखा सोएगी”|

इतने में ही रश्मि ने शिखा को समझाते हुए कहा “बेटा आप हमारे पास सो जाओ वहां परेशान हो जाओगी”|

तुरंत शिखा बोल पड़ी “नहीं मम्मी आप शिखर को सुला लो, मुझे रोहन भईया के पास सोना है”|

रश्मि शिखा को खिंच तान कर कमरे में ले आई| ये बात रेखा और रश्मि दोनों को परेशान कर रही थी की उनके बच्चे रिश्तो में फर्क नहीं कर पा रहें हैं|

रश्मि ने कमरे में गुस्से से शिखा को सुलाया वो सुबक रही थी|

राजेंद्र भी लेटा हुआ था| रश्मि गुस्से में बडबडा रही थी “मेरे तो बच्चे भी पागल ही पैदा हो गए| ताऊ ताई के पास सोएगी.. वो सुलाना भी चाहती हैं तुझे?”|

तुरंत शिखा ने लेटे-लेटे सुबकते हुए कहा “सुला रहे थे आप ले आई…आप गन्दी हो”|

ये बात सुनकर रश्मि ने शिखा को जलती हुई निगाहों से देखा| शिखा भी चुप चाप रश्मि की बगल में दुबक गयी|

रश्मि ने फिर बडबडाना शुरू किया “जब तेरे चोट लगी थी तो किसी ने फोन करके भी नहीं पूछा था| प्यार होता तो एक बार तो पूछते| जब शिखर बीमार हुआ था तो अपने मायके तो आ गयी थी पर 30 किलोमीटर चलके यहाँ तक नहीं आया गया|

लड़ाई सास से थी या मेरे बच्चो से| वो तो बस पैसा लेने के समय याद आते हैं सास सशुर| और हम यहाँ रहते हैं इसलिए हमसे भी बोलना पड़ता है| पर मेरे तो बालक भी बेवकूफ हैं पता नहीं कब अक्ल आयेगी इन्हें ”

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इतने में ही राजेंद्र बोल पड़ा “यार अब सोने भी दो|”

रश्मि तुनक कर बोल पड़ी “सो जाओ जी लो कुछ नहीं बोलूंगी| बोलू भी कैसे मेरी आवाज़ तो मेरा पति ही दबा देता है|”

कुछ ऐसा ही माहोल इंद्र और रेखा के कमरे में था| वहां भी रेखा रोहन पर अपनी भड़ास निकाल रही थी “तमीज़ तो है ही नहीं| इतना तेज़ मारा इसने रोहिणी के| मेरी बहन है! उनकी माँ तो नहीं चाहती के वो पास भी लगे तुम्हारे और एक ये हैं जी प्यार ढूला रहे है उनपर|”

रोहन सहमा सा बोला “वो भी तो मेरी बहन ही है”

रेखा तुरंत झिड़कते हुए बोली “चुप कर… आया बड़ा भैया बनने वाला.. जानता नहीं है| तुम्हारा ही हक खा रही है उनकी माँ यहाँ रहकर| सारा फंड खा रहे हैं| हमें तो कभी जरुरत हो तो हाथ फैला कर भीख मांगनी पड़ती है| उस पर भी मै ही बुरी| आ जाते है बेशर्म बन कर| नहीं तो रश्मि और राजेंद्र तो चाहते ही नहीं की यहाँ आये| मेरे तो बच्चो के लिए भी वो ही अच्छे| पता नहीं कब बड़े होंगे मेरे बच्चे?”

इस तरह रात गुजर गयी और अगले दिन फिर से वही दिनचर्या शुरू हो गयी| राजेंद्र नौकरी पर चला गया था| जबकि इंद्र कुछ पुराने मित्रो से मिलने बाहर गया था|

घर में रघुवर जी, प्रेमलता जी, आभा, रेखा, रश्मि और बच्चे थे| रेखा और रश्मि अन्दर कुछ काम कर रहीं थी| बाकि लोग सुबह का काम निपटा कर बरामदे में बैठे थे| और   बच्चे खेल रहे थे| तभी बच्चो में किसी बात को लेकर लड़ाई शुरू हो गयी| अबकी बार लड़ाई रोहन और शिखा में हुई थी|

शिखा बल सुलभ मन थी बोल पड़ी “मुझे पता है आप मुझे प्यार नहीं करते जब मेरे चोट लगी थी, देखने भी नहीं आये थे|”

इतना सुनते ही रोहन भी बोल पड़ा “ज्यादा मत बोल यहाँ कोई नहीं चाहता की हम आये यहाँ पर| चाचा-चाची भी नहीं चाहते| उन्हें तो ये लगता है की हम पैसे ले जायेंगे”|

शिखा भी बोल पड़ी “पैसे ही तो लेने आते हो तुम| तुम दादा दादी को प्यार ही कहाँ करते हो? तुम उनसे पैसे लेने आते हो”|

रोहन भी बोल पड़ा “तुम गन्दी हो और मेरी बहन तो बस रोहिणी है”|

शिखा भी बोल पड़ी “मेरा भाई भी शिखर है”|

ये सब सुन कर रेखा और रश्मि भी भीतर से बाहर आ गएँ और दोनों बच्चो को चुप कराके अन्दर ले गए| रघुवर जी और प्रेमलता एक दम से चुप होकर बैठ गए थे|

आभा को मानो सांप सूंघ गया था|

 रेखा और रश्मि झेंप गयी थी| लेकिन शायद दिल में कहीं सुकून था की अब उनके बच्चे समझदार हो गए थे|


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पढ़ें “सतीश भारद्वाज” की लिखी कहानी “भतेरी”


काश | हिंदी कहानी

आज अपने 18 वर्षीय बेटे श्रेयश की अर्थी उठते समय रजनी अपने पति अजय के कंधे पर सर रखकर फुट फुट कर रो रही थी| अजय
भी उसको सांत्वना दे रहा था| उनकी शादी को 20 वर्ष हो गए थे लेकिन आज पहली बार शायद वो एक दुसरे को सहारा देते दिखाई
दे रहे थे|

अजय और रजनी के संबंधो में कभी मधुरता नहीं रही| रोज होने वाली छोटी छोटी सामान्य घटनाएं भी विवाद का विषय बन जाती
थी| श्रेयश के जन्म को एक वर्ष का भी नहीं हुआ था कि दोनों अलग हो गये| लेकिन दोनों अलग भी नहीं हुए, अजय तलाक लेना
चाहता था तो रजनी तैयार नहीं हुई|

दोनों के मध्य मुकदमा हुआ| रजनी के परिवार ने अजय पर दहेज़ और घरेलु हिंसा का मुकदमा किया जिस कारण उसके परिवार को 2 वर्ष से ज्यादा जेल में भी रहना पड़ा| इसके बाद अजय ने भी रजनी पर चरित्रहीन होने के आरोप लगाये| तो रजनी ने भी अजय और उसके पिता पर चरित्रहीन होने के आरोप लगाये|

उन दोनों की इस कानूनी लड़ाई में दोनों की ही तरफ से एक दुसरे को नीचा दिखाने को हर तरह के झूठ-सच आरोप लगाये गए| श्रेयश की कस्टडी का मामला भी उनके तलाक के मुकदमें के साथ खींचता रहा| दोनों के ही माँ-बाप अब इस दुनिया में नहीं रहे थे|

बस एक अजय ही था जो इनके इस विवाद में सबसे ज्यादा पिस रहा था| उसे होस्टल में पढ़ाने के लिए भेज दिया गया था| अजय और
रजनी श्रेयश से मिलने तो जाते थे लेकिन श्रेयश ने कभी उन्हें एक साथ नहीं देखा था|

जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी वो भी इनके विवाद को समझ गया| उसने भी प्रयास किये लेकिन कुछ नहीं हुआ| श्रेयश ने नशे को अपना साथी बना लिया और पढ़ाई भी छोड़ दी| अब वो इन दोनों से ही दूर भाग रहा था|

अजय और रजनी को जानकारी मिली कि इनका बेटा अब जिन्दगी की आखरी सांसे गिन रहा है| अजय और रजनी श्रेयश के जीवन के आखरी 15 दिन उसके साथ रहे| जीवन में पहली बार वो साथ साथ भी रहे|

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इन 15 दिन दोनों इतना रोये कि श्रेयश के दाह संस्कार तक तो दोनों की ही आँखों के आंसु सुख चुके थे| अजय ने श्रेयश का अंतिम संस्कार अपने पैत्रक गाँव में ही किया| पहली बार अजय और रजनी में किसी भी विषय को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ था|
…….
रजनी और अजय दोनों एक साथ बाहर पार्क में बैठे हुए थे| दोनों अपने ही ख्यालो में खोये थे| उसे याद आया कि बचपन में श्रेयश कैसे
जिद करता था “मम्मी आप पापा के साथ क्यों नहीं आती| जब वो आतें हैं तो आप नहीं आती जब आप आती हैं तो वो नहीं आतें|”

रजनी टाल देती थी| श्रेयश भी अपने ख्यालो में था| उसे याद आ रहा था जब श्रेयश ने उससे पहली बार कहा “पापा आप और मम्मी साथ क्यों नहीं रह सकते?”

अजय ने झल्लाते हुए कहा “उसके साथ कोई नही रह सकता, तू भी नही”
अजय मौन हो गया|

अजय ने रजनी की तरफ देखा, वो भी उसको ही देख रही थी|
दोनो के मस्तिष्क में श्रेयश के साथ बिताएं आखरी 15 दिन घूम रहे थे|

रजनी को याद आया जब श्रेयश ने उन दोनों से कहा था “मम्मी मैं हमेशा आप दोनों को साथ देखना चाहता था| जैसे और बच्चो के
मम्मी-पापा होते थे| जब भी आप दोनों से साथ आने की बात की तो आप दोनों ने एक दुसरे के लिए बस आग ही उगली”

श्रेयश ने एक लम्बी सांस छोडकर कहा “मम्मी बुआ के यहाँ गया तो वहाँ सब लोग आप पर बहुत ही गंदे इल्जाम लगा रहे थे| और
मामा के यहाँ गया तो वो पापा पर बहुत ही गंदे आरोप लगाते थे| इसलिए मैं ऐसे किसी के भी पास नहीं जाता था जो आप दोनों को
जानता हो”

फिर श्रेयश ने अजय और रजनी की तरफ देखा और बोला “ पापा आप दोनों ने भी एक दूसरे पर बहुत गंदे गंदे इल्जाम लगाये थे| मम्मी
इतने गंदे तो आप दोनों कभी भी नहीं हो सकते हो”

रजनी और अजय दोनों के आँखों से अश्रुधारा बह रही थी|
अजय ने श्रेयश के माथे पर हाथ फेरते हुए कहा “बेटा तेरी मम्मी कभी गलत नहीं थी| वो बस उसे नीचा दिखाने के लिए मैंने ये झूठे
इल्जाम उसपर लगाये|”

रजनी भी बोल पड़ी “बेटा हम दोनों ही एकदूसरे को नीचा दिखाना चाहते थे… हराना चाहते थे| मैंने भी इन पर हर इल्जाम झूठ ही लगाए| हकीक़त तो ये है कि हम दोनों कभी भी एक दुसरे को जान ही नहीं पाए”

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इन 15 दिन के दौरान अजय और रजनी को एक दुसरे के सम्बन्ध में बहुत सी सामान्य जानकारियाँ पहली बार मालूम हो रहीं थी|
कहने को उनकी शादी हुई थी, एक बच्चा भी हुआ था, और दोनों ने तीन वर्ष साथ भी बिताए| लेकिन वो कभी भी एकदूसरे के
व्यक्तित्व से परिचित ही नहीं हो पाए|

अजय और रजनी दोनों ही अतीत कि कल्पनाओं से बाहर आये और रजनी फिर से रोने लगी|
अजय ने रजनी के सर पर हाथ फिराते हुए कहा “अब सब कुछ ख़त्म हो गया”

रजनी ने शांत होते हुए कहा “अजय सच ही ना हम दोनों तो कभी एक दुसरे को पहचान ही नहीं पाए| माँ बाप ने हमारा रिश्ता तय
किया था| लेकिन हमारी जिन्दगी का हर फैसला भी वो ही कर रहे थे| और तो और हमें साथ रहना है या अलग होना है ये फैसला भी
हमारा कहाँ था? उन्होंने ही हमारे लिए किया”

अजय ने जमीन की तरफ देखते हुए कहा “ठीक कहा तुमने, हमने कभी ये जानने की कोशिश ही नहीं की कि हम एक दुसरे से चाहते
क्या हैं? तुम्हारे माँ-बाप जो बोलते थे वो तुम सुनती और समझती थी और मेरे माँ बाप जो बोलते रहे वो मैं सुनता और समझता रहा|

लड़ाई तो उनके अहंकार की थी जो हम लड़ते रहे जीवन भर”
रजनी ने अजय की तरफ देखते हुए कहा “बाद में वकीलो की सलाह पर हम चलते रहे| हमारे माँ-बाप के अहंकार की लड़ाई लड़ी हमने
लेकिन उसे सबसे ज्यादा सहा हमारे बेटे ने|

क्या मिला हमें? क्यों कभी भी एक बार भी हमने सारी दुनिया को भूल कर एकदूसरे के बारे में, अपने बेटे के बारे में सोचकर कोई फैसला नहीं किया? तुम वो करते रहे जो तुम्हारे माँ बाप को सही लगा और मैं वो करती रही जो मेरे माँ बाप को सही लगा| क्या हुआ परिणाम मैं एक अच्छी बेटी, पत्नी और माँ नहीं बन पायी और तुम एक अच्छे बेटे, पति और बाप नहीं बन पाये”

अजय ने अपने हाथो में रजनी के हाथ को लेते हुए कहा “जिन माँ बाप के इगो की लड़ाई हमने लड़ी| वो चले गए हमें छोड़कर…लेकिन
हम लड़ते रहे| रजनी दूसरा गलत है या सही इसके लिए उसे जानना पड़ता है लेकिन हमने तो एक दुसरे को जानने कि कोशिश ही
नहीं की कभी”

रजनी ने एक करुण भाव चेहरे पर लाते हुए कहा “हमें एक दुसरे के लिए हमारे पेरेंट्स ने ही पसंद किया पहले”
अजय ने एकदम कहा “नही मुझे भी तुम पसंद थी”

रजनी ने प्रत्युत्तर दिया “मुझे भी तुम पसंद थे”

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अजय ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा “फिर क्या था जो हम साथ नहीं रह पाए”
रजनी ने कहा “तुम मेरे पेरेंट्स की एक्सपेक्टेशन पूरी नहीं कर पा रहे थे और मैं तुम्हारे पेरेंट्स की, हमने तो अपनी जिन्दगी का कोई
फैसला लिया ही नहीं|”

अजय ने कहा “काश हमने एक दुसरे को समझा होता…काश एक दुसरे से पूछा होता कि हम चाहते क्या हैं?….काश श्रेयश के बारे में
सोचा होता|……काश”

रजनी के चेहेरे पर सख्त भाव थे “अजय जिन्दगी के इस आखरी मुकाम पर हम दोनों एक दुसरे का सहारा बन सकते हैं| लेकिन नहीं
ना तुम मुझे सहारा दोगे ना मैं तुम्हे…ये ही सजा है हमारी”

जय ने भी सख्ती से कहा “हाँ प्रायश्चित तो हम कर भी सकते…अब हम दोनों को जीना है इस “काश” के साथ”

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पढ़े सुनील कुमार बंसल की लिखी कहानी  “तानाशाही”

मोहित राठौर की लिखी कहानी “ननंद”

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