साथियों नमस्कार, आज हम आपके लिए एक ऐसी Short Story in Hindi लेकर आएं हैं जिसे पढ़कर आप एक मर्तबा अपने शहीद जवानों के बारे में सोचने को मजबूर हो जाएँगे! यह कहानी “मुआवज़ा” एक शहीद और उसकी माँ के जीवन पर आधारित कहानी है, आशा है आपको हमारी यह कहानी जरुर पसंद आएगी!!
मुआवज़ा | Short Story in Hindi
बरेली के उस छोटे से मोहोल्ले की तंग गली में मुंग के पापड़ बनाते वक्त आचानक शांति चाची का ध्यान टीवी (T.V.) की तरफ गया|
ताज़ा खबर दिल्ली से आ रही है, आपको सीधा दिल्ली लिए चलते हैं…जहाँ वायुसेना का एक विमान “MIG 71” क्रेश (Crash) हो गया है और उसमे सवार वायुसेना के सभी दस जवान (Soldier) शहीद हो गए हैं!
(न्यूज़ एंकर ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने अलग ही लहज़े में कहा)…
टीवी में क्रेश (Crash) हुए विमान (plain) का मलबा दिखाई दे रहा था!
कहीं मैरा बेटा तो उस विमान में…..
(यह सवाल उस वक्त हर उस माँ के ज़हन में उठ रहा होगा, जिसका बेटा फौज में था…)
तभी फोन की घंटी बजी..
हलो…(शांति चची ने कांपते हाथो से रिसीवर (Receiver) उठाते हुए कहा)
माँ जी, दिल्ली में हुए विमान हादसे में मेजर रणदीप शहीद हो गए हैं!
(फोन दिल्ली से था)
शांति चाची के पैरों तले ज़मीं खिसक गई थी, फोन हाथ से गिर चूका था और शांति चाची ज़मीन पर बेसुध पड़ी थी|
पड़ोस में रहने वाले रहमान चाचा को जब इस इस बात का पता चला तो वे दौड़े चले आए|
रहमान चाचा रणदीप के पिताजी के बचपन के दोस्त थे, रणदीप उस वक्त छोटा सा था जब एक एक्सीडेंट (accident) में रणदीप के पिताजी की मौत हो गई थी| तब से रणदीप और उसके परिवार को रहमान चाचा ने ही सम्हाला था|
रहमान चाचा अपनी फलों की दुकान को बंद करके आते तब तक पूरा मोहोल्ला शांति चाची के घर पर जमा हो गया था| शांति चाची अब भी बेसुध थी| लगभग आधे घंटे बाद शांति चाची को होंश आया| होंश में आते ही शांति चाची को फिर से रणदीप की याद आ गई और वो फुट-फुट कर रोने लगी| रहमान चाचा ने शांति चाची को सम्हाला लेकिन खुद के आंसू भी रोक ना पाए|
दिन भर बरेली में मेजर रणदीप के शहीद होने का गम छाया रहा| बरेली के हर गली मोहोल्ले में लोग मेजर रणदीप को श्रद्धांजलि देने के लिए जमा थे|
अगले दिन तिरंगे में लिपटा मेजर रणदीप का पार्थिव शरीर जब बरेली आया, तो लोगो का हुजूम सड़कों पर उमड़ पड़ा| शांति चाची ने जब तिरंगे में लिपटे अपने लाडले को देखा तो वो फुट फुट कर रोने लगी|
अभी तो कह कर गया था, कि जब तक में वापस आऊंगा तब तक मेरे लिए एक सुन्दर सी दुल्हन ढूंड के रखना……..
(इतना कह कर शांति चाची फिर से रोने लगी)
पुरे राजकीय सम्मान के साथ मेजर रणदीप के अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू हुई, पूरा बरेली आज अपने लाडले को अंतिम विदा देने के लिए जमा था!
क्षेत्र के सांसद, विधायक और सभी बड़े नेता मेजर रणदीप की अंतिम यात्रा में शामिल थे|
रहमान चाचा ने अपने दोस्त का फ़र्ज़ निभाते हुए रणदीप को मुखाग्नि दी| इतने दिनों तक अपने आसुओं को रोकने वाले रहमान चाचा आज फुट-फुट कर रोने लगे|
उन्हें रणदीप की हर बात याद आ रही थी की कैसे वो बचपन में लकड़ी के टुकड़े को रहमान चाचा के पीछे लगाकर कहता “हिलना मत वरना मारे जाओगे” और रहमान चाचा जब उनको छोड़ने के बदले एक आम देने की पेशकश करते तो कहता “पुलिस को रिश्वत देते हो! सिपाहियों, गिरफ्तार कर लो इसे”! ,,उस उमर में भी कितनी समझ थी उसे….
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लोगों ने रहमान चाचा को सम्हाला!
क्षेत्र के विधायक ने मुआवजे के रूप में 15 लाख का एक चेक (check) शांति चाची की और बढाया!
“मुझे पैसे नहीं चाहिए, मुझे बस मेरा बेटा लोटा दो” शांति चची ने सिर्फ इतना कहा और फुट-फुट कर रोने लगी!
रहमान चाचा जानते थे, कि ज़िन्दगी के किसी ना किसी पड़ाव में शांति चाची को इन रुपयों की ज़रूरत ज़रूर पड़ेगी, इसलिए उन्होंने शांति चाची की तरफ से वो चेक ले लिया!
मेजर रणदीप को शहीद हुए अब लगभग एक महिना गुज़र गया था| मोहोल्ले के लोग शांति चाची से मिलने कभी-कभी आ जाया करते थे, लेकिन रहमान चाचा रोज़ दुकान जाते हुए शांति चाची से मिल कर जाते और दुकान से आते हुए फलों की एक थैली शांति चाची के दरवाज़े पर लटका जाते|
वो जानते थे, की शांति चाची उनके दिए फल अगली सुबह बच्चो में बाट देती है लेकिन वो यह भी जानते थे की बच्चो से मिलने पर शांति चाची थोडी ही सही पर कभी-कभी मुस्कुरा देती थी|
रहमान चाचा ने उस 15 लाख के चेक को एक बार शांति चाची को देना भी चाहा पर शांति चाची ने यह कह कर मना कर दिया, कि “राम जाने इन पैसों का अब में क्या करुँगी, रहमान भाई इसे तुम ही रख लो”|
कहते हैं की वक्त हर घाव भर देता है, पर जवान बेटे के इस तरह छोड़ जाने का गम शांति चाची भुला नहीं पा रही थी|
एक शाम जब शांति चाची सब्जी लेने बाज़ार गई, तो एक नन्हे से हाथ ने आकर उनका हाथ थाम लिया!
अचानक शांति चाची को ऐसा लगा जैसे उनका रणदीप लौट आया हो, “बचपन में जब रणदीप शांति चाची के साथ बाज़ार जाता तो मौका देख कर गायब हो जाता और जब शांति चाची रणदीप को ढूंडती तो चुपके से पीछे से आकर शांति चाची का हाथ थाम लेता|”
(शांति चाची यह सब सोच ही रही थी की उस छोटे से बच्चे ने शांति चाची का हाथ जोर से हिलाकर शांति चाची का ध्यान तोडा)
शांति चाची ने मुड कर देखा, यह दीपक था! रणदीप का दोस्त…
(रणदीप के बरेली में ज्यादा दोस्त नहीं थे, और जो थे वो अपने आप में व्यस्त रहते थे…लेकिन उम्र में 19 साल छोटा दीपक, रणदीप का सबसे प्यारा दोस्त था|
रणदीप जब भी बरेली आता तो सबसे पहले दीपक से मिलने जाता और जब तक रणदीप बरेली में रहता दीपक रणदीप के घर पर ही रहता था|
2 दिन का था दीपक, जब उसे कोई मंदिर की सीढियों पर छोड़ गया था| रणदीप ने जब पहली बार उसे मंदिर की सीढियों पर देखा तो घर ले आया, शांति चाची ने उसके माँ-बाप को खोजने की काफी कोशिश की, पर उसके माँ-बाप का पता न चल पाया|
रणदीप सबसे कहता की यह उसका छोटा भाई है, रणदीप ने ही उसका नाम रखा था “दीपक”…बहुत रोया था रणदीप, जब पुलिस ने दीपक को अनाथालय में भिजवा दिया था)
आज दिपक को देख, बड़े दिनों बाद शांति चाची के चहरे पर मुस्कुराहट आई थी..
रणदीप भैया कब आएँगे, उनसे कहना मेरा स्कूल बैग ले कर आए…अब तो पूरा फट गया है!
(दीपक ने मासूमियत से कहा….उसे कहाँ पता था की जिस भाई को वो इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता है, वो अब इस दुनिया में नहीं है…)
शांति चाची की आँखे भर आई…
एक झटके से शांति चाची नें दीपक का हाथ छोड़ा और घर चली आई..
(शांति चाची का इस तरह का व्यव्हार दीपक ने पहले कभी नहीं देखा था)
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शाम को जब रहमान चाचा शांति चाची से मिलने आए, तो इतने दिनों बाद उन्होंने शांति चाची के चहरे पर पहली बार मुस्कराहट देखी…शांति चाची बस दीपक के बारे में बात करती जा रही थी|
शांति चाची ने रहमान चाचा से मुआवजे में मिली रकम के बारे में पूछा तो रहमान चाचा ने ख़ुशी ख़ुशी शांति चाची को चेक लौटा दिया|
(रहमान चाचा जानते थे की शांति चची को अब जीने का मकसद मिल चूका है)
15 दिन बाद…
शांति चाची रहमान चाचा के साथ दीपक को लेने अनाथालय में आई थी|
उस दिन इस तरह से बाज़ार में छोड़ आने पर दीपक शांति चाची को गुस्से भरी नज़रों से देख रहा था|
पूरी कागज़ी कार्यवाही के बाद शांति चाची ने दीपक के सर पर प्यार भरा हाथ फेरा और कहा “आज से तुम मेरे साथ ही रहोगे”…
दीपक का गुस्सा एक पल में गायब हो गया और वो शांति चाची से लिपट गया|
काफी वक्त लगा दीपक को यह समझने में की रणदीप अब इस दुनिया में नहीं है….
16 साल बाद….
“बरेली के उस छोटे से मोहोल्ले की तंग गली में मुंग के पापड़ बनाते वक्त आचानक शांति चाची का ध्यान टीवी (T.V.) की तरफ गया…..अब तक की सबसे बड़ी खबर दिल्ली से आ रही है, आपको सीधा दिल्ली लिए चलते हैं…जहाँ मेजर दीपक सिंह को सेना के सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ा जा रहा है…
(न्यूज़ एंकर ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने अलग ही लहज़े में कहा)……….
आप पढ़ रहें हैं “मुआवज़ा | Short Story in Hindi”
साथियों, पुलवामा में हुए आतकी हमले से हम सबका मन आघात है| आज हम सभी देशवासियों के मन में इस हमले को लेकर आक्रोश है|
लेकिन सिर्फ आक्रोश से काम नहीं चलेगा| देश प्रेम की अलग आज देश के हर व्यक्ति तक पहुँचने की आवश्यकता है| इस कहानी “मुआवज़ा | Short Story in Hindi” के माध्यम से हमारा उद्देश्य आपको शहीद के एक परिवार से रूबरू करवाने का था|
आप सभी पाठकों से अनुरोध है की इस कहानी ज्यादा से ज्यादा फेसबुक और watsapp पर को शेयर करें ताकि देश प्रेम की अलग हर युवा में जाग सकें!!
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