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हिंदी दिवस 2020 पर कविता

साथियों नमस्कार, आज हम हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में आपके लिए एक खास कविता “हिंदी दिवस 2020 पर कविता | राष्ट्रभाषा पर बहस चले“लेकर आएं हैं| यह कविता हमारी मण्डली के लेखक बरुण कुमार सिंह ने लिखा है| आपको यह कविता कैसी लगी हमें Comment Section में ज़रूर बताएं|


हिंदी दिवस 2020 पर कविता | राष्ट्रभाषा पर बहस चले

 

नमस्कार! प्रणाम! हम भूल चले,
हैलो! हाय! बाय! हम बोल चले।
चरण स्पर्श! भूल चले,
आलिंगन को हाथ बढ़े।
संस्कृति को भूल चूकें,
विकृति को बढ़ चले।
पौराणिकता को भूल चले,
आधुनिकता को हाथ बढ़े।
अपव्यय पर हाथ रूके,
मितव्यय पर हाथ बढ़े।
कृत्रिमता को भूल चले,
अकृत्रिमता को बढ़ चले।
सुप्रीमकोर्ट में बहस बेमानी है,
न्याय की चौखट पर,
राष्ट्रभाषा हारी है,
मंजिल अभी बाकी है।
सितम्बर में हिन्दी दिवस मने,
हिन्दी पखवाड़ा विसर्जन बने।
राष्ट्रभाषा पर बहस चले,
हिन्दी पर राजनीति जारी है।
बरुण कुमार सिंह
ए-56/ए, प्रथम तल, लाजपत नगर-2
नई दिल्ली-110024
मो. 9968126797

हिंदी थी वह

हिंदी थी वह, जो लोगो के ह्रदयो में उमंग भरा करती थी,
हिंदी थी वह भाषा, जो लोगो के दिलो में बसा करती थी !!

हिंदी को ना जाने क्या हुआ, रहने लगी हैरान परेशान,
पूंछा तो कहती है अब कहाँ है, मेरा पहले सा सम्मान…!!

मैं तो थी लोगो की भाषा, मैं तो थी क्रांति की परिभाषा,
मैं थी विचार-संचार का साधन, मैं थी लोगो की अभिलाषा…!!

मुझको देख अपनी दुर्दशा, आज होती है बड़ी निराशा,
सुन यह दुर्दशा व्यथा हिंदी की, ह्रदय में हुआ बड़ा अघात ,
बात तो सच है वास्तव में, हिंदी के साथ हुआ बड़ा पक्षपात…!!

हिंदी जो थी जन जन की भाषा, और क्रांति की परिभाषा,
वह हिंदी कहती है लौटा दो उसका सम्मान, यही है उसकी अभिलाषा..!!

अपने ही देश में हिंदी दिवस को तुम, बस एक दिन ना बनाओ,
मैं तो कहती हूँ, हिंदी दिवस का यह त्यौहार तुम रोज मनाओ…!!

आओ मिलकर प्रण ले, हम सब करेंगे हिंदी का सम्मान,
पूरी करेंगे हिंदी की अभिलाषा, देंगे उसे दिलो में विशेष स्थान…!!


हिंदी जीवन है सदियों से,

हिंदी है मेरा अभिमान!
हिंदी को गर पूजूं न में,
मिट जाए मेरी पहचान!!
जिस धरती पर हुए अनेकों,
महापुरुष जो थे निष्काम!
उस भूमि और उस हिंदी को.
हमारा शत-शत प्रणाम!!

ह से हिंदी 

“ह” से “ह्रदय” ह्रदय से “हिंदी”, हिंदी दिल में रखता हूँ,

“नुक्ता”लेता हूँ “उर्दू” से, हिन्दी उर्दू कहता हूँ..

शब्द हो अंग्रेज़ी या अरबी, या कि फारसी तुर्की हो,

वाक्य बना कर हिन्दी में, हिन्दी धारा में बहता हूँ..

हिंदी-ह्रदय विशाल बहुत है, हर भाषा के शब्द समेटे,

शुरू कहीं से करूं मगर, हिंदी में ख़तम मैं करता हूँ..

केशव का हो कठिन काव्य, या मधुर छंद रसखान के हों,

मैं कबीर का समझ के दर्शन, सूर के रस में रमता हूँ..

तुलसी सदृश दास हिन्दी का, बन कर स्वयं समर्पित हो

मातृ रूपिणी हिन्दी तुमको, नमन कोटिशः करता हूँ…

—प्राणेन्द्र नाथ मिश्र


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